विभाजन की व्यथा
मैं भारत माँ हूँ !
मैं आज अपनी व्यथा
सुनाने आई हूँ ।
धर्म के नाम पर लड़ते देख
अपने बच्चों को फिर,
देश के विभाजन की
याद दिलाने आई हूँ।
अब तो नही खुद को बाँटो
नही धर्म के नाम पर तुम सब लड़ो,
दिया है इतिहास ने जो गहरा धाव,
उसको तुम सब याद रखो।
मैं भारत सोने की चिड़ियाँ
कहलाती थी ।
पर तुम लोगों के इन्ही आपसी
मतभेदों के कारण,
मैं लूटी गई कई बार।
मूगल आए, अंग्रेज आए,
लूटा सबने हमे बारी-बारी।
सबने चोट किया था हमपर
पर दर्द नही था विभाजन जितना भारी।
बाँट कर अपने लोगों ने हमे,
जख्म दिया था बहुत गहरा,
उन जख्मों की टीस आज भी,
नासूर बनकर मेरे बदन में है सारी।
मैं भुल अभी तक नही पाई हूँ!
विभाजन की वो रातें काली!
जिसने नफरत को कर दिया था,
आपसी भाईचारा और प्यार पर भारी।
सबने लूटा था हमें
पर हम इतना कभी नही लूट पाए थे ,
चोट पहुँचा था कईयों ने हमपर
पर दर्द इतना गहरा नही दे पाए थे।
जितना उस दिन अपनों के हाथों,
हमकों रौदा और लूटा गया था।
करके हमपर पर तीखा प्रहार,
मेरे आबरू को करके तार-तार
बाँट दिया दो हिस्सों में हमें
सबने नंगा जश्न मनाया था।
न जाने वह कौन सी घड़ी थी,
जिसने ऐसा दिन दिखाया था।
प्यार भरी हमारी इस धरती पर,
नफरत का अँधियारा फैलाया था।
इन सब की माँ होने के नाते
शर्म हमें बहुत आई थी।
मेरी आँखे जो उस दिन झुक गई थी,
सच कहती हूँ आज तक न उठ पाई है।
इन सब की करनी ने
मेरे आस्तित्व पर ही प्रश्न चिह्न लगा दिया था।
देख अपने सपूतों की हैवानित ,
मै उस दिन बहुत रोई थी,
मै चीखी थी,चिल्लाई थी
पर उन सब को हैवान
बनने से रोक न पाई थी।
देख अपने सपूतों को हैवान बनते,
मैं उस दिन ही मर गई थी।
जिस दिन मेरे सपूतों ने
हैवानित का नंगा नाच किया था।
उस दिन बहाकर अपनों का खून ,
कर अपनों पर जुल्म, बलात्कार,
उस दिन सारी मर्यादा को
लाँघ दिया था सबने एकबार।
सारी रिश्तों को तार-तार कर
सबने बुझाया था,खून से प्यास।
उस दिन ऐसा लगता था,
जैसे कोई रिश्ता नही बचा था।
बस जहाँ देखो सिर्फ नफरत
और नफरत बिछा दिख रहा था।
खून की नदियों बह रही थी,
धरती पर ले-लेकर अंगड़ाई।
चारों तरफ लोग चीख रहे थे
यह कैसी मनहूसियत छाई।
सबके सर पर न जाने
कौन सा हैवान सवार था
जो अपने ही अपनो को खून बहाकर ,
सड़क पर मदहोश होकर नाच रहा था ।
ऐसा लग रहा था जैसे उस दिन ,
इंसान से इंसानित पूरी तरह
से मर चुका था ।
सबके आँखो मै आँसू थे
डर ही डर चारों तरफ बिछा था।
मैंने तो माँगी थी आजादी,
यह कौन सी आफत आई थी।
मेरी आँचल को खुशियों से
भरने की जगह,
इस विभाजन ने कंलक की
कालिख लगाई थी।
अंग्रेजों ने जाते-जाते यह
कैसा साजिश रच डाला था,
अपनो में डालकर फूट
अपनो के मन में अपनो के
लिए कैसा वैर डाला था।
कुछ मेरे अपने सपूत को ही
साजिश का हिस्सा बन डाला था।
हो गया कामयाब अंग्रेज इस
साजिश में,
बाँट हमें दो हिस्सों में,
कहाँ हमें पूरा रहने दिया था।
आजादी मिलने से पहले ही
हमको मार दिया था।
मारकर मेरे आस्तित्व को
सबने हमें दो हिस्सों में बाँट दिया था।
हिन्दुस्तान और पाकिस्तान नाम से,
दो देश खड़ा कर दिया था।
खून थे सबके एक मगर,
दिल कहाँ एक रहने दिया था।
कहने को आजादी मिल रही थी,
पर कीमत बहुत बड़ा था।
एक गहरा दर्द उसने जाते-जाते,
जन-जन के मन को दे दिया था।
आज भी उस दर्द की टीस
रह-रह धधक उठती है।
लाख भुलाना चाहे मगर
वह नजरों से नही हटती है।
आज भी आजादी के परवानों को,
यह बात नासूर बनकर चूभती है।
इतिहास में ऐसा विभाजन कभी,
नही देखने और सुनने को मिला है।
जितनी जान-माल की क्षति हुई,
इसका हिसाब-किताब
इतिहास का पन्ना भी नही लगा सका है।
इसलिए मैं भारत अब तुम से
यही निवेदन करती हूँ।
मै मिट गई आजादी के नाम पर,
अब हिन्दुस्तान नही मिटने पाएँ।
किसी की बुरी नजर
कभी भी इसकी तरफ उठने न पाएँ।
कोई भी साजिश अब फिर से,
हिन्दुस्तान को न अपना
हिस्सा बना पाएँ।
न ही हँसती-खिलती हिन्दुस्तान पर,
कोई अपना बुरी निगाहें डाल पाएँ।
~ अनामिका