विनोद सिल्ला की कुंडलियां
कुंडलियां
बेटी मेरे देश की, झेले अत्याचार|
मूक दर्शक बनी सत्ता, मूक हुआ अखबार||
मूक हुआ अखबार, रक्षक भक्षक बन गए|
किसकी यहाँ मजाल, डंडे लेकर ठन गए||
कह ‘सिल्ला’ कविराय, हालत हो गई हेठी|
सूझे ना तरकीब, बचाएं कैसे बेटी||
-विनोद सिल्ला©