विनोद सिल्ला की कुंडलियां
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भगवान था कलयुग का, करता था सतसंग|
भगतजनों की भीड़ थी, चढ़ा भगति का रंग||
चढ़ा भगति का रंग, चढ़ावा चौखा आए|
बाबा जी की मौज , महंगी भस्में खाए||
कह सिल्ला कविराय, उसका थोथा ज्ञान था|
अंधभगत थे लाख, जीनका वो भगवान था||
-विनोद सिल्ला©