विनायकी
केरल में एक निर्दोश हथिनी की निर्मम हत्या किए जाने से आहत मेरी स्वरचित भावपूर्ण कविता श्रदांजलि स्वरूप विनायकी को समर्पित
मानवता की भेंट चढ़ गई,
एक निरापराध गजरानी।
अपने ही आंसुओं में डूबी,
था सर से पैरों तक पानी।।1।।
व्याकुल शिशु उदर में उसके,
वह संकट से थी अंजनी।
खाते फल मुख ज्वलन हुआ,
थी नीचों की कारस्तानी।।2।।
तड़प रही दो दिवस विनायकी,
तब पीड़ा न किसी ने जानी।
अद्भुत है ईश्वर तेरी माया,
अब मानवता भी हुई हैवानी।।3।।
संकट जो झेला दुखिया ने,
शब्दों से न जाये बखानी।
हर पल घुट घुट कर सहती,
यह केवल नहीं कहानी।।4।।
न्याय दिलाना गजरानी को,
अब हमने है मन में ठानी।
हत्यारो की खैर नहीं अब,
है हम सच्चे हिंदुस्तानी।।5।।
स्वरचित कविता
तरुण सिंह पवार
सदस्य यूथ विंग समर्पण युवाजिला सिवनी (मध्यप्रदेश)