विनती
विनती
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दया भाव रखना अवध के दुलारे ।
सियाकंत रघुवीर श्री राम प्यारे ।।
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लखनलाल सेवा करें नित तुम्हारी,
भरत पर बरसती कृपा नाथ भारी,
दया कीजिए हम खड़े नाथ द्वारे।
सियाकांत रघुवीर श्री राम प्यारे ।।
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करें भक्ति हनुमत सरीखी प्रभो हम,
कभी भी हमारे नहीं नैन हों नम,
अभय दीजिए हैं शरण हम तुम्हारे।
सियाकांत रघुवीर श्री राम प्यारे ।।
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जले नाम की ज्योति उर में तुम्हारी,
अभी मन अयोध्या तरसती हमारी,
सदा मन चकोरा तुम्हीं को पुकारे।
सियाकांत रघुवीर श्री राम प्यारे ।।
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महेश जैन ‘ज्योति’,
मथुरा !
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