विध्वंस
गर ग़ौर से देखो तो चहुँ ओर चमत्कार है ,
इस धरा ने अनमोल वृक्ष , फूल पौधे दिए
क्या ये चमत्कार नहीं ?
ये रंग बिरंगे फूल …
इनका आक|र
इनकी बनावट
इनकी खुशबू
तरह तरह के बिखरे रंग ,क्या ये चमत्कार नहीं ?
क्या कुछ नहीं दिया हमें माँ प्रकृति ने
लेकिन हम निरादर करते रहे – करते रहे
कभी गीता में कान्हा ने कहा था –
जब भार बहुत बढ़ जाता है
तो पुरुष की सहभागी प्रकृति
स्वयं शुद्धि का आवाहन करती है
कुछ तो कारन बनेगा विध्वंस का
कोई कम्प – तूफान – कोरोना
वो ईश्वर अपने सर कोई पाप नहीं लेता
निमित्त मात्र बनाता है …
बहुत हो गया शिव का तांडव
अब तो उनको शांत कराना होगा
हे मानव न खेलो इस प्रकृति से ….
नष्ट हो जायेंगे हम सब …
अब तो जागो अब तो सम्भलो
आने वाली पीढ़ी को कुछ तो
शुद्ध प्रदान करो
बहुत हुआ नाश
शांत चित्त कुछ तो कल्याण करो
माँ ( प्रकृति ) ने बहुत दिया
अब तो माँ का ध्यान करो
अब तो माँ का ध्यान करो |