विध्वंकमाला छंद
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विध्वंकमाला छंद- (वर्णिक)
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आओ रचें छंद है ये पुराना ।
कोई चलेगा न कैसा बहाना ।।
माँ की कृपा तो सभी को मिलेगी ।
गीतों भरी जिंदगी ये खिलेगी ।।
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माँ शारदे तू हमें भाव देना ।
भूलें कभी राह तो साध लेना ।।
तेरी कृपा ही हमारा सहारा ।
जो भी पुकारे उसी को दुलारा ।।
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माया कभी भी नहीं संग जाती ।
मीरों- फकीरों सभी को लुभाती ।।
जो भी मिले जाल में फाँसती है ।
डोरी बिना ही सदा बाँधती है ।।
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तेरा न मेरा किसी का न कोई ।
जाना नहीं तथ्य है आयु खोई ।।
बोया यहाँ जो वही तो उगेगा ।
काँटा उगा देख काँटा लगेगा ।।
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महेश जैन ‘ज्योति’
मथुरा ।
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