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4 Jun 2023 · 1 min read

विध्न विनाशक नाथ सुनो, भय से भयभीत हुआ जग सारा।

विध्न विनाशक नाथ सुनो, भय से भयभीत हुआ जग सारा।
मोदक को अब मोल नहीं, मदिरा मदिरालय ही उजियारा।
नाथ अनाथ हुआ अनुराग, मिठास विहीन सनातन धारा।
प्रेम पवित्र रहा न चरित्र कु-संगति से सतसंगति हारा।।

✍️ संजीव शुक्ल ‘सचिन’

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