विधि का विधान
मैं हतोत्साहित मैं परेशान, मैं विचलित मैं हैरान।
मैं पागल मैं अनजान, मैं खोजता हूं बस ज्ञान।।
मैं यहां भी मैं वहां भी, मैं धूप भी मैं छांव भी।
मैं बोलता और डोलता, मैं बिन तराजू तौलता।।
मैं रीत भी और प्रीत भी, मैं बिन सुरों के गीत भी।
मैं हार भी और जीत भी, मैं सृष्टि का संगीत भी।।
मैं ईर्ष्या और द्वेष भी, मैं कुटिलता और क्लेश भी।
मैं प्रेम का प्रकार भी, मैं नफरतों की चाल भी।।
मै शक्ति का संचार भी, मैं मुक्ति का हूँ द्वार भी।
मैं मोह भी और मोक्ष भी, मैं काल भी विकराल भी।।
मैं तेज भी निस्तेज भी, मैं चाहतों का वेग भी।
मैं हलाहल मैं चक्रधर, मैं ब्रह्म का भी रूप धर।।
मैं शस्त्र भी और शास्त्र भी, मैं दिग्विजय सर्वत्र भी।
मैं भूख भी और प्यास भी, मैं काम का एहसास भी।।
मैं सतयुग और त्रेता भी, मैं द्वापर विजेता भी।
मैं कलयुग का काल भी, मैं तो महाकाल भी।।
मैं आदि और अंत भी, मैं तो षड्यंत्र भी।
मैं सृष्टि की शुरुआत भी, मैं सृष्टि का हूँ अंत भी।।
मैं भूत भी भविष्य भी, मैं पुकार भी ललकार भी।
मैं सर्वशक्तिमान और सर्व विद्यमान भी।।
पहचान मैं कौन हूँ, क्या मैं मौन हूँ?
समय बलवान हूँ, हर किसी का काल हूँ।
पहचान ले तू अब मुझे, विधि का विधान हूँ।।
===============================
“ललकार भारद्वाज”