*विधा: दोहा
*विधा: दोहा
शांत रस
*सृजन शब्द -दिव्य रूप दर्शन मिले,
दिव्य रूप दर्शन मिले, आयी प्रभु के द्वार।
हाथ जोड़ दासी कहे,अब बरसाओ प्यार।।
जीवन संध्या हो चली, सुध लो प्रभु जी आन।
एक बार तो दर्श दो, निकले मेरी जान।।
मान बढ़ाओ भक्त का,तुम तो हो भगवान ।
शरण तुम्हारी आ पड़ी, प्रेम भक्ति दो दान।।
विषयों में थी डूबती, तुमने पकड़ा हाथ।
भटकूँ जो मैं जब कभी, रहना मेरे साथ।।
ये जग अंधा कूप है, माया के हैं नाग।
मन इनसे अब दूर है, गाता मस्ती राग।।
दूरी कैसे मैं सहूं, निशिदिन बरसें नैन।
मिल जाओ प्रभु आप जो,तब आएगा चैन।।
जोत जलाई प्रेम की, नाम जपूं
दिन रात।
एक तुम्हारी आस है, देना दर्शन दात ।।
सीमा शर्मा ‘अंशु’