विधा―प्रदूषण
―प्रदूषण
वो सिगरेट सुलगा रहा था।
वो जिंदगी को जला रहा था।।
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वो कश पे कश लगा रहा था ।
वो फेंफड़ों को गला रहा था ।।
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साया उसको हँसा रहा था ।
गम अंदरूनी रूला रहा था।।
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जिसे समझ रुतवा रहा था।
बिछुड़ना आज सता रहा था।।
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वो देख धुँआ घबरा रहा था।
अपनी करनी पछता रहा था।।
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वो बेटे को समझा रहा था।
नेत्रों पे अँधकार छा रहा था।।
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वो अर्थी पे सज जा रहा था।
अनजाना संदेश छोड़ जा रहा था।
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जिंदगी अमूल्य कह जा रहा था।
वो ताकिये पे पत्र रख जा रहा था।।
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“प्रदूषण न फैलता सिगरेट न पीता ”
अपनों से दूर न होता शान से जीता”।।
सज्जो चतुर्वेदी ******
शाहजहाँपुर