विधाता छंद (28 मात्रा ) मापनी युक्त मात्रिक
विधाता छंद (28 मात्रा ) मापनी युक्त मात्रिक
लगा गा गा – लगा गा गा -लगा गा गा -लगा गा गा
जमाने में अलग देखे , बने है लोग दीवाने |
कहेगें आइएगा भी , बुलाते पर नहीं खाने |
चले जाते वहाँ पर भी , जहाँ देखें निजी झंडा –
फटे में टाँग देने को , सभी अब गा उठे गाने |
विधाता भी बने कुछ है , कहे हम सूरमा आली |
हमारा ही चमन देखो , जहाँ बजती सदा ताली |
लिखा हमने सही मानो , नहीं नुक्ता करो चीनी –
जुड़े है लोग हमसे , करें जो रोज रखवाली |
बनाया बाग अपना है , नहीं पर फूल खिलते है |
करो बस वाह मेरी ही, सदा यह सीख लिखते है |
सुभाषा सोचता रहता , कभी तो वक्त आएगा –
खिलेगें फूल भी सुंदर , जहाँ पर शूल दिखते है |
सुभाष सिंघई जतारा (टीकमगढ़) म०प्र०
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गीतिका आधार – विधाता छंद
लगा गा गा – लगा गा गा- लगा गा गा- लगा गा गा
समांत स्वर – आना , पदांत -था जरा आके
तुम्हें हमसे हुई चाहत , बताना था जरा आके |
सुरों से शब्द जो निकले , सुनाना था जरा आके |
मुझे क्यों दूर रखकर ही , लिया था फैसला तुमने ,
दिले हालात का कागज , सजाना था जरा आके |
मुझे भी दूर से देखा , नहीं तुम पास आई हो ,
कभी भी हाथ हौले से , दबाना था जरा आके |
जमाने से रहीं डरतीं , कहेगें लोग क्या हमको ,
हुआ है प्यार हमको भी , जताना था जरा आके |
मिले मौके सदा तुमको , नहीं इजहार कर पाई,
मिलाकर भी कभी नजरें , झुकाना था जरा आके |
करो तुम याद मेरी वह , जहाँ आँखें मिलाई थी ,
तुम्हें भी आँख की पुतली , नचाना था जरा आके |
गईं थी छोड़कर मुझको , तभी से सोचता रहता ,
पकड़कर बाँह मेरी भी , हिलाना था जरा आके |
मिली हो आज फिर से तुम , शिकायत कर रहीं मुझसें,
हमीं से कह रहीं तुमको , मनाना था जरा आके |
चलो स्वीकार करता मैं , “सुभाषा” साथ देगा अब ,
समय की चूक कहती है , लजाना था जरा आके |
सुभाष सिंघई , जतारा (टीकमगढ़ ) म० प्र०
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