विधाता की पाती
तितली और खगकुल
रंगों के ऐसे गुरुकुल
अप्रतिम सुन्दरता के
भरे हैं जैसे घटकुल
ये नयनों के निहोरा!
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नाजुक परों के कैनवस पर
मोहक चित्र कारी
कौन है वो चितेरा !
जिसकी तूलिका ने
ये सब अद्भुत उकेरा
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ये पाती है विधाता की
लिखावट है ये त्राता की
जो कहना चाहती है
मनुज कर मान प्रकृति का
ना बन तू अब लुटेरा।
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विध्वंसक अट्टहास तेरा ?
मेरे उपहार का उपहास !
तू उपकार भूला ?
बनाया है तेरी खातिर
ये दिलखुश सा बसेरा ।
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नयन का उपनयन कर
खोल दृग
आखेट तज दे
तेरे आगे नहीं कुछ?
भ्रमित मस्तिष्क तेरा!
अपर्णा थपलियाल”रानू”