विधवा
एक हंस का जोड़ा ,
किसने तोड़ा,
प्रेम के बंधन से बंध,
लिया था सात फेरा,
निभाने को साथ,
उम्र के आखिरी पड़ाव तक,
खिलौना बन गया ,
दुर्भाग्य के हाथ,
हो गई विधवा,
अनहोनी घटना ने पीड़ा दिया,
जीवन जीना नीरस पल,
पल थे गहरे ,
भूलते नहीं चेहरे,
किधर गया वो नियम,
सात वचनों का संकल्प,
हुआ न इस धरा पर एक जनम,
आतुर मन ढूंँढ रहा,
लौटा दो मेरा साजन,
कौन समझे निस्तब्ध मन,
दिन में ही ढ़ल गई सूर्य किरण,
कितना है गम ,
एक दीपक बुझ गया,
आ गया अँधेरा तल से ऊपर,
सामाजिक शब्द और कर्तव्य,
खोजने लगे जलता हुआ दीपक,
जो करेगा विधवा का जीवन रोशन,
अब नही है कमजोर ,हताश और अबला,
बंधन मुक्त हुई ,
चुनेगी हंस इस जगत में स्वयम्,
अन्यथा रहेगी हक से स्वतन्त्र।
रचनाकार-
बुद्ध प्रकाश
मौदहा हमीरपुर।