विधवा जनता..
जनता जैसे कोई जवान विधवा,
सब्ज़बाग दिख कर सुहाने दिनों के..
राजनेता हर पांच साल के लिए,
पटक देतें हैं लोकतंत्र के बिस्तर पर,
और तब तक नोचते हैं, जब तक..
पांच साल पूरे नही होते,
फिर ये विधवा मौका देती है..
नए दलालों को,
जो बेचते हैं वादे ,सपने और उम्मीदें..
और फिर से ख्वाब सजा,
करके श्रृंगार नई दुल्हन सी जनता..
नई सुबह के ख्वाब बुनती,
लोकतंत्र के बिस्तर पर खुद को सजा..
लुटती रहती है बार बार ,
हर बार, ये बेचारी विधवा जनता..