विद्या पर दोहे
तन मन को उज्ज्वल करे, विद्या ज्ञान स्वरूप ।
निर्मल धारा सी बहे , भरती अंधा कूप ।।
विद्या भरती ज्ञान से ,मन में सरस विचार ।
उत्तम होते कार्य सब ,होते दूर विकार ।
विद्या मन का आइना , खोले अंतर्- द्वार ।
करे विनत विद्या सदा, दे विवेक-उजियार ।।
सत्य भाव विद्या भरे , दे ज्योतिर्मय ज्ञान ।
निर्मल हो अंतःकरण,ऐसा दे वरदान।।
मिले नम्रता शीलता ,विद्या से संज्ञान ।
अंतर्मन नित प्रति सजे ,बढ़ता जाए मान ।।
विद्या से होता सदा ,सही गलत का भान ।
मिले जिसे जितनी जहाँ ,करे सदा वह दान ।।
विद्या से मिलती रहे ,जीवन में पहचान ।
मिले सभी को रत्न यह , हो विशिष्ट सम्मान ।।
विद्या तो है साधना ,साधक लेता साध ।
पूर्ण मनोरथ सब करे ,जीता है निर्बाध।।
विद्या जीवन मार्ग दे ,दूर करे भटकाव ।
खुशियों से झोली भरे ,पग-पग करे बचाव ।।
विद्या अनुपम रत्न है ,इसको रखें सँभाल
मुखमंडल चमके सदा ,बनती जीवन ढाल ।।
विद्या मन-शृंगार है ,उत्तम करे विचार ।
प्रसन्नता मुख झलकती ,भरती हिय गुंजार ।।
विद्या देती धैर्य है ,नहीं मानती हार ।
दृढ़ निश्चय करती सदा ,करती भव से पार ।।
विद्या हिय संगीत है ,बजती मधुरिम राग ।
करे उच्चता भान जब ,मुक्त करे हर दाग ।।
डा. सुनीता सिंह ‘सुधा’ शोहरत
स्वरचित
वाराणसी