विद्या देवी मां शारदा के विविध रूप ( वसंत पंचमी विशेष )
जगत पिता ब्रहमा के कर कमलों से ,
वीणावादिनी की वीणा के स्वरों से ,
निकली है सरिता सी निर्मल, म्रदुल विद्या .
बहती आ रही है सदियों से यह ,
सरल, मगर बेहद गंभीर यह ,
ज्ञान-ध्यान व् विज्ञान और संगीत की अजस्र धारा विद्या .
रंग-भेद ,जाति-पांति और सम्प्रदाय ,
सारे बन्धनों को तोड़ यह जाए ,
होती है स्वतंत्र ,निष्पक्ष स्वभाव की विद्या ।
राह में हो चाहे जितनी दुर्गम घाटियाँ ,
भ्रष्टाचार ,बईमानी ,कुटिल राजनीतियाँ ,
सारी बुराईयों को अपने संग बहा ले जाए विद्या ।
समय व् हालातों के कारण ,
बदलते हुए साम्राज्यों के कारण ,
टूटी बेशक मगर लुप्त नहीं हुई विद्या ।
ज्ञान ,विज्ञानं व् साहित्य , वाणिज्य ,चिकित्सा ,
या युद्ध-कला .ऐसे अनेक धाराओं बंटी विद्या ।
भारत -भूमि के विकास में,
जन-जन के उद्धार में .
सदा सहयोगिनी रही है और रहेगी यह विद्या ।
इस सरिता सी निर्मल धारा में,
इस अथाह तल की गहरायी में,
जो जितना डूबा उसी को प्राप्त हुई यह विद्या ।
जो हो जिज्ञासु प्रवृति का ,
जिसमें भाव हो पूर्ण समर्पण का ,
उसी सच्चे मानव को समर्पित होती है विद्या.
सांसारिक ज्ञान ,आकाशीय ज्ञान,
आत्म ज्ञान ,ब्रह्म ज्ञान ,
सभी से परिपूर्ण करती है यह विद्या।
मानवता का पाठ पढ़ाकर ,
अन्य प्राणियों व् प्रकृति से प्रेम बढाकर ,
मनुष्य को संत बनाती है यह संस्कारी विद्या ।
मेरी विनम्र प्रार्थना है तुमसे,
आज के भटके हुए युवाओं से ,
तुम इस सरिता रुपी विद्या को ना मलिन करो.।
ना घोलो ज़हर मेरे वतन में ,
गद्दारी ,व् अलगाववादीता का ,
इसके शिक्षा -संस्थानों रुपी मंदिरों को ना दूषित करो।
है यह पतित पावनी विद्या ।