विद्यासागर जी पर मनहरण छंद
1
विद्यासागर मनहरण
वर्तमान वर्धमान, विद्यासागर को जान,
रखे आज विद्यमान, धीर महावीर का।।
बने सुधी साधो सम, व्रत नित्यप्रति कर्म,
नीति न्याय त्याग तप, वीर महावीर का।।
करुणा के स्रोत बने, दीन दुखियों के लिये,
आँखों में लिये हो जैसे, नीर महावीर का।।
मुकमाटी महाकाव्य, रचे लेखनी की धार,
सार शोध ग्रन्थ बना, क्षीर महावीर का।।
2
पर्युषण जलहरन
उत्तम क्षमा से करो, प्रथम दिवस शुरू,
मार्दव द्वितीय दिन, रहो साधना में तुम।।
आर्जव तृतीया पर, शौच चौथ दिवस हो,
पंचमी में सत्य को ही, भरो साधना में तुम।।
छठें दिन संयम को, सप्तमी में तप करो,
जानो अष्टमी में त्याग, करो साधना में तुम।।
नवमीं में अकिंचन, दशम में ब्रह्मचर्य,
क्षमा प्रार्थना से दुःख, हरो साधना में तुम।।
3
दयाभाव से ही तप त्याग व तपस्या मानों,
दयाभाव करुणा की अलख जगाओ रे।
जग में जरूरी आज मानते अहिंसा को तो,
ऊंच नीच भेद भाव जग से मिटाओ रे।।
आज की समस्या का जो हल चाहते हैं आप,
भाई भाई भाव वाली फसल उगाओ रे।।
पर दुख निज दुख सम मान कर के ही,
धर्म ध्यान धारणा को मन में बसाओ रे।।
4
स्वारथ के कारण ही पैदा जो तनाव करे
जानो उसी ने ही तो ये आग जो लगाई है।।
जीवन के दिन चार मन क्यों पड़ा बीमार,
करना विचार फिर काहे की लड़ाई है।।
प्रेमभाव धारकर राग द्वेष छोड़कर,
हिलमिलजुल रहो उसी में बढ़ाई है।।
देश में अमन होगा गुल गुलशन होगा,
भेदभाव वाली गर खाई को मिटाई है।।