विद्यालय में एक दिन ( कहानी )
विद्यालय में एक दिन ( कहानी )
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कालेज के दरवाजे पर ही मैनेजर साहब मिल गए । मैंने कहा “भाई साहब ! कालेज की पुताई कितने सालों से नहीं हुई है ?”
उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा” कागजों में तो हर साल हो जाती है ।”
मैंने कहा” तब तो पुताई होते- होते कागजों की स्याही भी काले के स्थान पर सफेद हो चुकी होगी?।”
वह हंसने लगे ,बोले “इतने फंड हैं कि कहां क्या खर्चा पड़ा ,कोई नहीं समझ सकता”
मैनेजर साहब कई साल से विद्यालय के प्रबंधक थे ।अशासकीय सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों में सारा कामकाज सरकार के पैसों से चलता है, इसलिए प्रबंधकों को विद्यालय चलाने के मामले में कोई चिंता नहीं रहती। कई कक्षाओं में अध्यापक नहीं थे। छात्र शोर मचा रहे थे। मैंने मैनेजर साहब से कहा” हमारे समय में तो ऐसा नहीं रहता था?”
मैनेजर साहब बोले” आपका जमाना 40 साल हो गए। तब से अब तक स्थितियां बहुत बदल चुकी हैं।”
मैं सोचने लगा ,बात तो सही है ।लगभग 40 साल पहले मैंने इसी विद्यालय से इंटर की परीक्षा उत्तीर्ण की थी और उसके बाद सरकारी नौकरी में लग गया । 40 साल विभिन्न जनपदों में तबादले होते रहे और अब लौट कर आया तो पुराने विद्यालय के सामने से गुजरने पर एक नजर उसे देखने की इच्छा जाग्रत हो गई ।
“भाई साहब! आधे पद अध्यापकों के खाली पड़े रहते हैं” मैनेजर साहब ने बताया।
” क्यों ?आप भरते नहीं हैं ?”
“यह सारी जिम्मेदारी सरकार ने अपने ऊपर ले रखी है ।”
“फिर पढ़ाई कैसे होती है ?”
इसी बीच इससे पहले कि मैनेजर साहब कोई उत्तर देते, एक अध्यापक ने आकर मैनेजर साहब को प्रणाम किया ।जब वह चले गए तो मैनेजर साहब बोले “इन लोगों को हमने प्राइवेट रखा हुआ है। जिन विषयों के अध्यापक नहीं होते हैं,यह उनको पढ़ा देते हैं ।”
“क्या इनका वेतन भी सरकार देती है?”
” सरकार से क्या मतलब है? सरकार को तो कोई फिक्र है ही नहीं !जो सोचना पड़ता है , हम सोचते हैं”- कहकर मैनेजर साहब और कामों में लग गए ।
अभी- अभी जिसने मैनेजर साहब को प्रणाम किया था, मुझे एक कमरे में खाली बैठा हुआ दिखा। मैंने सोचा चलो उससे बात की जाए।
“क्यों भाई !आप की नियुक्ति सरकार ने नहीं की है?”
वह सुनते ही भड़क गया।”करती तो आज यह दिन थोड़ी देखना पड़ता।”
मैंने उसको शांत किया” भाई साहब धैर्य से अपनी बात बताइए ”
वह बोला” सरकारी अध्यापक को ₹50000 मिलते हैं और हमें सिर्फ आठ-दस हजार में काम करना पड़ता है”
मैंने कहा “तुम्हारा काम कुछ थोड़ा कम होता होगा ?”
“कम नहीं…. सबसे ज्यादा काम हमें करना पड़ता है…. रोजाना आना पड़ता है। ”
“फिर तो तुम्हें मैनेजर के शोषण और उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए?”
बोला “साहब! जिस दिन आवाज उठाई, अगले दिन नौकरी पर नहीं रहेंगे। 6 साल से नौकरी कर रहा हूं ।वही आठ-दस हजार महीना मिलता है ।यह नौकरी भी बस तभी तक के लिए है , जब तक हमारे विषय का टीचर आयोग से नहीं आ जाता ।जिस दिन आयोग से टीचर आया, हमारी इस नौकरी से भी छुट्टी समझिए।”….वह कहते हुए रुआँसा था।
” टीचर कब तक आते हैं आयोग से?”
” आने को 6 महीने में आ जाएं वरना 10 साल तक भी कोई सुध लेने वाला नहीं है। सब भगवान भरोसे सिस्टम चल रहा है”
इसी बीच मैंने नजरें उठाकर देखा तो एक पुराने अध्यापक जो अब वृद्ध हो चुके थे विद्यालय में दिख गए। जब मैंने इंटर किया था, तब तो वह पढ़ाई पूरी करके तुरंत ही नौकरी पर लगे होंगे और अब सिर के बाल सफेद हो चुके थे। चेहरे पर झुर्रियां भी थीं। चाल में भी हल्का ढीलापन था।
मैंने कहा” गुरु जी आपने मुझे पहचाना?”
उन्होंने कहा “मैं नहीं पहचान पाया कौन हो ?”
फिर मैंने उन्हें बताया कि मैंने इतना समय पहले यहां से इंटर पास किया था ।बातों बातों में पता चला कि गुरुजी को रिटायर हुए पांच- छह वर्ष हो चुके हैं । अब उनको सरकार के द्वारा पेंशन भी मिल रही है।
” देखो हम तो 2005 से पहले वाले हैं। इसलिए हमें पेंशन मिल रही है, वरना जो 2005 के बाद वाले सरकारी कर्मचारी हैं उनके लिए पुरानी पेंशन का प्रावधान नहीं है। हमारी पेंशन भगवान की कृपा से बहुत अच्छी मिल रही है और अब पंद्रह -बीस हजार इसी विद्यालय में अल्पकालिक शिक्षक के रूप में नियुक्ति के बाद अलग से मिल रहे हैं।”
मैं आश्चर्यचकित था…..” गुरु जी ! यह कैसे संभव है कि एक ही व्यक्ति रिटायरमेंट के बाद पेंशन भी ले और वही व्यक्ति उसी कार्य के आधार पर वेतन भी ग्रहण करें ?”
गुरुजी मुस्कुराए, बोले “सरकार में सब चलता है । दरअसल हम बूढ़ों पर सरकार इसलिए मेहरबान है कि वह ₹50000 देकर नए शिक्षक रखना नहीं चाहती और 15 – 20 हजार रुपए में नौजवानों को नियुक्तियाँ इसलिए नहीं देना चाहती कि कहीं वह स्थायित्व की माँग न कर बैठें।”
मेरी आंखें फटी की फटी रह गयीं। हे भगवान ! कितने प्रकार के शिक्षक एक ही विद्यालय में काम करेंगे ! खैर घूम-घाम के मैं विद्यालय से बाहर आया और जैसे ही मैंने बाहर कदम रखा ,एक शिक्षक नेता मुझे दिखाई पड़ गए ।उनसे भी पुरानी जान-पहचान थी। नमस्कार का आदान-प्रदान हुआ। मैंने सोचा सामयिक विषय है, इनके सामने भी छेड़ दिया जाए …”भाई साहब ! सरकार तो ₹50000 वेतन दे रही है , लेकिन मैनेजरों द्वारा प्राइवेट तौर पर आयोग से आने तक अध्यापक रखकर तथा उनको कम वेतन देकर उनका शोषण नहीं हो रहा है? आपने क्या आवाज उठाई ?”
शिक्षक नेता कुछ सेकंड चुप रहे, फिर बोले” यह मैनेजरों का अकेला काम नहीं है। इसमें और भी बहुत कुछ देखना पड़ता है। फिर कभी बात होगी”- कहकर बात अधूरी छोड़ी और चले गए।
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लेखक : रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश) मोबाइल 99 97 61 5451