विदेह देस से ।
इतिहास मध्य स्वप्न कुंजमे
तोर बोल मधुर रक्तरंजित
सरस्वती की कलकल धारा
करू हे,मिथिला सिंगार,करू!
विदेही के विदेह देस से ।
कुलवन देवी ललित वस्त्रमे
मात जगततारणी जगदबे
मैथिली सिते,कैसे वनमे
करू हे,मिथिला सिंगार,करू!
वाल्मिकी के विदेह देस से!
हिमालय पर कुसुम नृत्यभाव
लुम्बनि के तरू राधिका पर,
कामनी पर इन्दु अमृतधरा
मगध सीमा विस्तार करेै ।
धुतृ धर्मात्मा भृंग गुंजे
आंगुर कुसुम कुन्जे कुन्जे,
धुतृ धर्मात्मा भृंग गुंजे
धन्य मगध पुंजे पुंजे
धन्य धारा पुंजे पुंजे
विपुल बैसी नारी ।
विदेही के विदेह देस से ।
सखी हे,श्री वर देखन
प्रेम अँजोर अँगान,
मधु मधुर अमृतशाला
चन्द्रा मामा चकोरी ।
भरल लाऊ कटोरी
ओ ओहि लोक से
हेरब सखी श्री गोविन्द,
ओ ओहि लोक से
हेरब सखी श्री गोविन्द,
देव पद रज्जविन्द
रक्ततिलक प्रदेश मगध से।
श्रीहर्ष आचार्य