विडम्बना
हर दरख्त हर शाक यही कहता है ।
धरती पर मानवता कहाँ झलकता है।।
नदियों की थी जो अमृतधारा।
अब बताओ कहाँ बहती है,
कहती है नदियाँ पुकार
अब मुझमें विष ही क्यों रहती है।।
हर दरख्त हर शाक यही कहता है ।
धरती पर मानवता कहाँ झलकता है।।
नदियों की थी जो अमृतधारा।
अब बताओ कहाँ बहती है,
कहती है नदियाँ पुकार
अब मुझमें विष ही क्यों रहती है।।