विडंबना
आज के अखबार की ताजा खबर थी शहर का फ्लाईओवर पुल जिसका उद्घाटन पिछले हफ्ते हुआ था कल रात भरभरा कर गिर गया ।
जिसकी चपेट में आकर काफी लोग घायल हो गए और कुछेक की मौत हो चुकी है ।
टीवी खोला तो उसमें भी हादसे का वर्णन बढ़ा चढ़ा कर पेश किया गया।
घायलों की मदद में कम और तमाशा बीन ज्यादा नजर आए।
कुछेक तो दर्द से कराह रहे घायलों की तस्वीर अपने मोबाइल से खींचते नज़र आए।
कुछेक मीडिया वाले घायलों से यह पूछते कि उन्हें चोट कैसे लगी पूछते नज़र आए ।
जमा भीड़ को हटाने के लिए पुलिस वाले लाठीचार्ज करते नजर आए ।
आनन-फानन में विपक्षी पार्टी के नेता भी वहां पहुंच गए और शासन के विरुद्ध बयानबाजी करते और हादसे को राजनीतिक रंग देते नज़र आए।
फिर खबर आई कि सरकार ने पुल के ध्वस्त होने की जांच समिति बैठा दी है ।
घायलों और मृतकों को मुआवजा राशि घोषित कर दी है।
फिर खबर थी कि राज्य परिवहन मंत्री ने प्रभावित क्षेत्र का दौरा करके प्रभावित परिजनों को सांत्वना दी है ।
जिसकी तस्वीरों को शासन ने जोर-शोर से मीडिया और अखबारों में प्रकाशित किया ।
सरकार ने ठेकेदार और कारीगर को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया।
और पुल निर्माण इंजीनियर को सस्पेंड कर के उस पर अनियमितता का केस दर्ज कर दिया ।
सरकार की जांच रिपोर्ट आई जिसमे पाया गया कि सीमेंट में निर्धारित मात्रा से अधिक रेत मिलाकर पुल का निर्माण किया गया ।
जिसकी वजह से पुल कमजोर होकर गिर गया ।
ठेकेदार ने अपना पक्ष रखा कि यह गलती कारीगर की है।
उसने उसके आदेश की अवहेलना करते हुए सीमेंट मे ज्यादा रेत मिलाकर सीमेंट की कालाबाजारी की है ।
ठेकेदार पर राजनेताओं का वरद्हस्त होने से
वह साफ बच गया और उसने पुल गिरने का ठीकरा कारीगर के सर मढ़ दिया ।
इंजीनियर कुछ प्रभावी लोगों की अनुकंपा से बरी हो गया।
आखिर वह निरीह कारीगर जिसने केवल दिए आदेशों का पालन करते हुए अपने काम को अंजाम दिया ।
को दोषी करार कर हुए जेल में डाल दिया ।
कुछ दिन गुज़रने पर पता चला कि उस इंजीनियर को लोक निर्माण विभाग ने बहाल कर उसका ट्रांसफर दूसरे जिले में कर दिया ।
और उस पुल की मरम्मत का ठेका शासन ने फिर उसी ठेकेदार को दे दिया।
पर इस बार ठेकेदार ने अपनी कंपनी का नाम बदल दिया ।
इस पूरे दौर में बेचारा र्निदोष कारीगर जेल में बैठा अपनी तकदीर को कोस रहा था ।
क्योंकि उसे बचाने वाला कोई मसीहा उसे अभी तक नहीं मिला था ।