विज्ञानमय हो तन बदन
**विज्ञानमय हो तन बदन**
विज्ञानमय हो तन बदन चाहे कोई भी हो वतन ।
न भय कहीं आतंक का हो ना कहीं किंचित पतन।
सबके हम हों,सब मेरे हों ! खुशहाल हो पूरा वतन।
धरा पर जहां भी जन्में हम सूरज,माटी ,एक पवन।
सूरज चांद एक हम सबके करें रोशनी हरते तम।
हम सभी करें सत्कर्म चयन तो बाधाएं होंगी कम।
पानी धरा में रिसने दो धरती को हरा-भरा कर दो।
हवा का ताप घटाकर ग्लोबल वार्मिंग ‘ना’ कह दो।
हमारा यू.एन.को बचन, कार्बनउत्सर्जन करेंगे कम।
संसाधन जो सीमित हैं ,मिलकर उपयोग करेंगे हम।
सभी विविधताओं में तप , जीवन सफल करेंगे हम।
तुलसी ,सूर ,रहीम, कबीरा मानवता हित में गंभीरा।
गांधी ,मंडेला अरु टेरेसा ,मार्टिन लूथर का संदेशा।
भौतिकता की चकाचौंध में मत पालो कोई भरम।
कट्टरवाद कहीं ना पनपे वैज्ञानिकता दम-2 दमके।
भाषा, क्षेत्र,जाति,धर्मा लक्षित करें सदा शुभ कर्मा।
हो योग,अहिंसा,सदाचार अरु मानवता परमोधरम।
निबल,गरीब,विकल,लाचार सबसे होवे प्रीतअपार।
जैवविविधता संरक्षण हो नदियों की हो निर्मल धार।
जियो और जीने दो प्यारे ! होवे जीवन का आधार।
हम हैं प्रकृति के प्रकृति हमारी जानें सबका तनमन।
हां ! विज्ञानमय हो तन बदन चाहे कोई भी हो वतन।