विजेता
आपने पढ़ा कि राजाराम अपनी पत्नी के मन को खुश रखने के लिए पाँच बरसी बाबा के पास जाने को तैयार हो जाता है। अब पढिए पृष्ठ संख्या नौ और दस। यहाँ भाग दो समाप्त हो जाएगा। मैं आपको बताना चाहूँगी कि इस रोचक उपन्यास के कुल तीस भाग हैं।
वह बाबा जी के बारे में मन ही मन विचार कर ही रहा था कि सहायक के मुँह से अपना व नीमो का और अपने गाँव का नाम सुनकर चौंक गया। सहायक ने उनके साथ एक और दम्पति को पुकारा था-शमशेर व बाला को।
वे चारों जन बाबा जी के पास बैठ गए। बाबा जी ने एक नजर उन चारों पर डाली और फिर ध्यान मग्न हो गए। लगभग दो मिनट बाद उन्होंने कहना शुरु किया,”राजाराम बेटा!”
अपना नाम सुनते ही राजाराम बाबा जी की तरफ देखने लगा। बाबा जी के नियम के अनुसार वे कुछ भी कह या पूछ नहीं सकते थे। भाग्य जानने आए व्यक्ति को चुप रहकर बाबा जी की बातें सुननी होती थीं। बाबा जी का कहना जारी था,”तुम मेरी तुच्छ-सी शक्ति को लेकर कुछ ज्यादा ही जिज्ञासु लग रहे हो। इसमें तुम्हारा वश नहीं है क्योंकि एक इंसान होने के नाते मैं भी हैरान हो जाता हूँ। मैं अक्सर रेलगाड़ी,हवाई जहाज जैसी चीजों को बनाने वाले इंसान की काबिलियत को देखकर हैरान हो जाता हूँ।मैंने योग-साधना से वह शक्ति; हालांकि यह बहुत सीमित है, पाई है जहाँ तक अपना विज्ञान नहीं पहुँच पाया है। मुझे लगता है कि यह कोई बहुत बड़ी बात नहीं है और चमत्कार तो बिल्कुल भी नहीं। यह सब उस परमपिता की अपार कृपा है जो किसी- किसी को प्रेरित करता है। कोई व्यक्ति आविष्कार कर देता है तो कोई भूत-भविष्य को देखने में सक्षम हो जाता है।इसलिए अपने मल को शांत करके मेरी बात ध्यान से सुनो।
बाबा जी की यह बात सुनकर बाकी तीनों राजाराम की तरफ देखने लगे। राजाराम का सिर आस्था में झुक गया था।
बाबा जी ने फिर उनके भाग्य के बारे में बताना शुरु किया,”तुम दोनों पुरुषों ने आज से लगभग पन्द्रह साल पहले एक जैसा पाप किया था। शमशेर ने अपने खेेत में चर रही एक गर्भवती गाय को इतनी बुरी तरह से पीटा था कि बाद में वह चल बसी थी,हालांकि इस घटना का तुम्हें बेहद दुख हुआ था और पश्चाताप के लिए तुमने गऊशाला में तूड़ा भी गिरवाया था। वह हत्या गैर-इरादतन थी और गुस्से में वह पाप हुआ था। अब राजाराम! तुम्हें भी याद आ गया है सब। लगभग उसी समय तुमने भी अपने खेत में चर रही एक गर्भवती गऊ को मार-मारकर घायल किया था जो बाद में चल बसी। हालांकि अपने किए का तुम्हें बेहद दुख था और खुद तुमने उस गाय की सेवा की,उसका इलाज भी करवाया परन्तु वह चल बसी। बेटा, तुम दोनों ने क्रोध के वश में होकर जो पाप किया था,वह है तो अक्षम्य परन्तु इन देवियों के साथ तुम्हारा रिश्ता जुड़ गया है, इसलिए एक संभावना नजर आ रही है। मैं भूत को तो साफ-साफ देख सकता हूँ लेकिन भविष्य का केवल अंगाजा लगा सकता हूँ। सौभाग्य से मैंने आज तक जो भविष्यवाणी की है, वह गलत सिद्ध नहीं हुई है। बेटा, तुम्हारे घर यदि कोई ग्वाला अपनी गायों संग आ गया तो समझो कि तुम्हारा मनोरथ पूरा हो गया। तुम दोनो के घर यदि कोई आएगा तो एक ही ग्वाला आएगा और उस ग्वाले के पास उन दोनों गायों का पुनर्जन्म रूप होगा। तुम उनकी इतनी सेवा करना कि वे खुश होकर तुम्हें श्राप-मुक्त कर दें और तुम्हारे घरों में संतान का जन्म हो सके। हाँ, एक बात का विशेष ध्यान रखना-तुम या तुम्हारे परिचित कोई ऐसी परिस्थिति पैदा मत करना कि कोई ग्वाला तुम्हारे यहाँ आने को मजबूर हो जाए। तुम्हारी मार से मरी उन गउओं का आगमन अपनी मर्जी से होगा और यदि नहीं हुआ तो फिर अगले पाँच साल में ही कुछ बता पाऊँगा मैं।”
एक पल रुककर बाबा जी ने फिर कहना शुरु किया,”मैंने राजाराम बेेटे के मन के भावों को पढ़ लिया है। बेटा, तुम सोच रहे हो कि मैंने तुम्हारा भूत स्पष्ट रूप से बता दिया है पर भविष्य नहीं। मैं इसका जवाब दे चुका हूँ। जो हो चुका है, उसे मेरी आँखें देख लेती हैं परन्तु भविष्य ऊपरवाले के सिवा कोई भी नहीं देख सकता। तुम एक लहलहाती फसल से उससे होने वाले उत्पादन का अंदाजा ही लगा सकते हो,एक बुद्धिमान बालक से यह उम्मीद कर सकते हे कि बड़ा होकर वह बड़ा आदमी बनेगा परन्तु फसल खराब हो सकती है, बालक गलत राह पकड़ सकता है। ठीक इसी प्रकार मैं बंदे के पिछले कर्मों के आधार पर उसके भविष्य की धुंधली-सी तस्वीर देख सकता हूँ।