विजेता
शमशेर ने अपनी धोती को निचोड़ते हुए अपनी पत्नी बाला से कहा,”भाग्यवान! तावली-सी चढ़ा ले कढ़़ाइये नै! मैं नहा लिया सूं और ईब गोलू नै बुलावण जाऊँ सूं।”
बाला ने चूल्हे में आग सुलगाने की कोशिश को जारी रखते हुए अपने पति से कहा,”थाहम बुला ल्याओ गोलू नै। आओगे इतणै तै मैं मालपूड़े त्यार करे पाऊँगी।”
शमशेर ने अपने बड़े भाई के घर के बाहर खड़े होकर ऊँची आवाज में कहा,”गोलू बेटी! आज्या तावली सी।”
अंदर से कोई प्रतिक्रिया न पाकर उसने घर के अंदर कदम रखते हुए कहा,”राणी गोल्हड!तेरी चाची गरमा-गरम मालपूड़े बणावन लाग रह्यी सै।”
अंदर बैठी उसकी भाभी अपनी सात साल की बेटी गोलू को चुप रहने का सख्त आदेश दे चुकी थी। इसीलिए गोलू अपने चाचा के द्वारा बार-बार पुकारे जाने के बावजूद चुप थी। अपनी माँ के डर से वह रजाई ओढ़े पड़ी थी परन्तु उसका बालमन गर्म-गर्म मालपूए और आलू- मटर की सब्जी खाने को मचल रहा था। जब से उसके चाचा-चाची नए घर में गए हैं,वह इस स्वादिष्ट पकवान के दर्शन तक को तरस गई है।उसकी माँ की मालपूए बनाने में कोई दिलचस्पी नहीं है।
शमशेर को जब अंदर से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली तो वह अंदर की तरफ बढ़ा।उसकी भाभी ने खिड़की में से उसे अंदर आते देख अपनी बेटी से कहा,”सो ज्या गोलू।वो चाहे कितणे रुक्के मार ले,तन्नै बोलणा नहीं सै।”
बेचारी गोलू अपनी माँ की यह बात सुनकर सोचने लगी,झगड़ा होया मेरे चाचा और बापू का, पर स्यामत आगी मेरी। चाची कितणे सुवाद(स्वादिष्ट)मालपूड़े बणावै सै!मन्नै तो वैं इतणे मीठे लाग्गैं सैं के अपणे घर की रोटी,चूरमा कुछ ना आच्छा लागता वैं खाए पीच्छै।”
शमशेर ने अंदर जाकर देखा कि उसकी भाभी रजाई में लिपटी बैठी है।उसे गोलू दिखाई नहीं दी।अचानक उसकी नजर वहाँ रखी प्लेट पर पड़ी जिसमें बाजरे की एक रोटी और लाल मिर्च की चटनी रखी हुई थी। उसने मन ही मन कहा,”या किसी लुगाई सै यार?आज सकरांत का शुभ दिन सै पर इस भली औरत नै आज भी बाजरे के टिक्कड़ पाथकै धर दिए।”
वह रोटी गोलू के लिए थी परन्तु मालपूओं की तीव्र लालसा ने उसे यह बेस्वाद, आम भोजन उसके गले से नीचे नहीं उतरने दिया। महज एक कोर खाकर उसने इसे छोड़ दिया था। शमशेर को घर के अंदर देख गोलू की माँ लगभग चीखते हुए बोली,”तू के लेण आया सै म्हारे घर म्ह?”
अपनी माँ की यह रोबदार और रूखी आवाज सुनकर गोलू उठ बैठी।
(बंधुओ! यह मेरे उपन्यास विजेता का पहला पेज है। मैं हर रोज एक पेज भेजने की कोशिश करूँगी)