विजेता
विजेता की पृष्ठ संख्या सात पढ़िए।
हमेशा की तरह वह घी,आचार और फलों का थैला भरकर अपने साथ लाई थी।
नीमो ने रोते-सुबकते हुए अपनी माँ को दो दिन पहले घटी घटना बता दी। अपनी बेटी की बात सुनकर बुढ़िया बोली,”बेटी नीमो,मैं इस्से खात्तर भेजी सूं बाबा जी महाराज नै।”
“बाबा महाराज कौण माँ?”
“न्यू समझ ले के बाबा ऊपरवाले का रूप सै। वो पाँच साल तक का करम बतावै सै। लोग उसनै पाँचबरसी बाबा कहवैं सैं।”
“पर माँ उसतैं हमनै के—।”
बीच में ही वह बुढ़िया बोली,”हाथ जोड़के इब्बै माफी मांग नीमो। वो भगवान का सच्चा भगत सै। दूत सै वो लीली छतरी वाले का।”
नीमो ने अपनी माँ की बातों से प्रभावित होकर कहा,”हे बाबा जी महाराज मन्नै माफी देणा।”
रात को खाने के दौरान बुढिया ने अपने दामाद व बेटी से कहा,”इबकै पणवासी नै थाहम दोनों बाबा जी के धाम पर जाणा।”
अपनी सास की यह बात सुनकर राजाराम ने हंसकर कहा,”मां जी! आप जैसे लोगों को बहकाना ज्यादा मुश्किल काम नहीं होता।”
“माफी मांग बेटा। वो बाबा जी सब कुछ जाणै सै।”
“मां जी, मैं इन बातों को नहीं मानता।” अपने पति को जिद करते देख नीमो ने कहा,”एक बै जाणे म्ह के लगै सै?”
“पर नीमो, बिना कुछ किए ही लोग शक की निगाह से देखते हैं।बाबा के पास चले गए तो लोग गाँव ही छुड़वा देंगे।”
“न्यू क्यूं छुड़वा देंगे? अठे बैठक म्ह बैठण आले सारे ताऊ-दादे अपणा साथ देवैंगो। मेरा मन न्यू कहवैसै के आप्पां नै एक बै जरूर चलणो चाहिए।”
“ठीक है नीमो। तूं ऐसा सोचती है तो मैं चल पड़ूंगा, बाकी ये सब बहम से ज्यादा कुछ नहीं है। ”
उसकी यह बात सुनकर नीमो तथा बुढ़िया एक साथ बोल पड़ी,”बाबा जी बुरा मत मान लेणा।”
उनकी यह मूर्खता देखकर राजाराम वहाँ से उठकर चला गया। उसके जाते ही बुढ़़िया ने नीमो को बताना शुरू किया,”नीमो,बाबा कोए छोटो-मोटो साधू ना सै। वो किसे भी आदमी की किसमत पाँच बरस म्ह एकबै बतावै सै। जो कोए पाँच साल होण तैं पहल्यां उड़े चल्यो जावै तो महाराज उसनै देखते ही न्यू कह देवैंगे-बच्चा इब्बै तेरा बखत रह रह्या सै।”