विजात छन्द
विजात छन्द, प्रथम प्रयास
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मुक्तक:-
किसी को द्वार प्यारा है।
किसी को यार प्यार है।
हमें कुछ खास है प्यारा,
कि हिंदुस्तान प्यारा है।
तुम्हें अपना बनाऊँगा।
यही कसमें उठाऊंगा।
तुम्हें अपना बना के ही,
तुम्हारे पास आऊँगा।
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दही को छीन कर खाता।
कि मटकी तोड़ के जाता।
मुझे हरदम सताता है।
वही कान्हा कहाता है।
कभी वंशी बजाता है।
कभी माखन चुराता है।
यशोदा का यही प्यारा।
कि गोकुल का वही प्यारा।
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स्वरचित:-
अभिनव मिश्र✍️✍️