विजात छंद 【गीत】
छंद- विजात
छंद विधान-यह १४ मात्रिक मानव जाति का छंद है। इसकी १,८ वीं मात्रा का लघु होना अनिवार्य है। इसके अंत में २२२ वाचिक भार होता है।यह चार चरणों वाला छंद है।क्रमागत दो-दो चरण या चारों चरण समतुकान्त होता है।
मापनी- लगागागा लगागागा
१२२२ १२२२
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【मुखड़ा】
सखी! मझधार क्यों छोड़ा?
भला क्यों नाम था जोड़ा?
【अंतरा】
नही मैने, कभी रोका।
कहाँ मैने, कभी टोका।
बता हमको, सखी ; जाते।
न बाधा वो, हमे पाते।१।
वचन देकर, है क्यों तोड़ा?
सखीं! मझधार, क्यों छोड़?टेक।
नहीं दरबार मांगा था।
नहीं संसार मांगा था।
तनिक अभिसार मांगा था।
सखी! सुखसार मांगा था।२।
भला क्यों मुख ,अभी मोड़ा?
सखी! मझधार, क्यो छोड़ा?टेक।
सजन गर पास जो होते।
सखी ऐसे न हम रोते।
विरह बन नाग है डसता।
हृदय बरछी बना धसता।३।
कलुष सम प्रीत कयों जोड़ा?
सखी ! मझधार क्यों छोड़ा?टेक।
सभी को त्याग आये थे।
हमें वो व्याह लाये थे।
उन्हीं को देव माना था।
हमें क्यों भेव माना था।४।
कपट से नेह क्यों जोड़ा?
सखी ! मझधार क्यों छोड़ा?टेक।
स्वरचित,
【पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’】