‘विजय यात्रा’
‘विजय यात्रा’
एक गाँव में विजय नाम का एक व्यक्ति रहता था।उसके दो पुत्र थे तम और और प्रकाश। तम अमावस्या की रात को हुआ था और प्रकाश सूर्योदय के समय। नाम के अनुरूप उनका व्यवहार और चरित्र भी वैसा ही निकला। तम को लिखना पढ़ना, किसी की सहायता करना, मिल-जुलकर रहना कतई पसंद नहीं था। वह छोटे भाई प्रकाश से हर समय लड़ता-झगड़ता रहता था। उसकी हर वस्तु छीन लेता था। उसे पढ़ना भी पसंद नहीं था। प्रकाश देर रात तक पढ़ता था।सब प्रकाश की तारीफ करते थे,तब तम गुस्से में कई बार उसकी किताब फाड़ डालता था। स्कूल में झगड़ना और गालियां देना तो उसकी आदत बन गई थी। विजय के कारण ही वह इतने समय तक स्कूल में टिका हुआ था। विजय उसी स्कूल में अध्यापक रह चुका था। विजय बहुत ही सभ्य संस्कारी और मिलनसार था। बुराई और बेईमानी का घोर विरोधी था। जब उसे प्रकाश से तम की तमाम करतूतें पता चली तो उसने स्कूल जाकर स्वयं प्रधानाचार्य से उसे दंडित करने की प्रार्थना की। विद्यालय से उसका नाम काट दिया गया। विजय ने भी उसे साफ़ शब्दों में कह दिया कि अपने खाने पीने की व्यवस्था खुद करे। कहीं भी मजदूरी करे।वो अब उसे किसी प्रकार की मदद नहीं करेंगे।
तम ने कई जगह कोशिश की किन्तु उसके बुरे स्वभाव के कारण उसे काम नहीं मिल पाता था ।अगर मिल भी जाता तो वो चार दिन भी नहीं टिक पाता था। भूखे रहने से उसकी शक्ति भी जवाब दे रही थी। वह विजय के कदमों में गिर पड़ा।
पिताजी मुझे काम नहीं मिल रहा है ,जहाँ जाता हूँ मुझे निकाल देते हैं। कुछ पैसे दे दो भूखा हूँ । विजय ने समझाया बेटा पहले अपने अंदर की बुराई पहचानों। बुरे और आलसी लोगों से लक्ष्मी भी दूर ही रहती हैं। बुरे कर्मों से पाया धन भी बरकत नहीं देता। बेटा मैंने जो किया तेरी अच्छाई के लिए ही किया। अभी समय है अपने को बदलने की कोशिश करो। तुम्हारे जीवन का सब अंधकार मिट जाएगा।
उस दिन से ही तम ने संकल्प कर लिया, वो अपने जीवन को अंधकार मय नहीं रहने देगा। और तभी घर लौटेगा जब कुछ कर दिखाएगा।उसने विजय के चरण छुए और निकल गया अपनी विजय यात्रा पर।
लेखिका-गोदाम्बरी नेगी
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