“विजयादशमी”
“विजयादशमी”
विजयादशमी त्यौहार मना रहे ,रावण का पुतला जलाया।
सीता अपहरण कर मर्यादा उल्लंघन कर रावण हर्षाया।
नारी शक्ति का रूप धारण कर ,सीता जी ने राम का ध्यान लगाया।
लंका दहन कर हनुमान जी ने माँ सीता का पता लगाया।
भाई विभीषण ने गूढ़ रहस्यों का पता श्री राम जी को बतलाया।
नाभि में अमृत भरा हुआ था जो बुरे कर्मों का प्रभाव दिखाया।
असत्य पर सत्य का विजय ध्वज फहराया।
अधर्म पर धर्म की जीत का ,शंखनाद ध्वनि बजाया।
पाप पर पुण्य कर्मों से ,बंधन मुक्त मोक्ष दिलाया।
क्रोध अंहकार पर दया याचिका ,क्षमा दान कराया।
अज्ञान पर ज्ञान की विजय ,बुरे कर्म का पर्दाफाश कराया।
इन्द्रियों पर काबू पाकर ही ,विजयी हो श्री राम ने सीता को वापस लौटाया।
रावण रूपी दम्भ अभिमानी का ,संहार किया।
श्री राम मर्यादा पुरूषोत्तम कहलाया।
अच्छाई के मार्ग पर चलकर ही ,ये पावन पर्व विजयादशमी कहलाया।
अच्छाई की जीत मिली हो ,लेकिन श्री राम भेष कोई न धर पाया।
नफरत फैली है चारो ओर ,प्रीत की रीत निभा न पाया।
पावन दशहरा पर्व मनाने ,एक दूसरे को गले लगाया।
जीवन में कभी श्री राम बनकर देखो , समभाव दृष्टि से प्रेमभावना जगाया।
रामरूपी नाव भंवर फंसी हुई, भवसागर पार उतर पाया।
राम नाम सुमिरन करते हुए, परमात्मा मुक्तिबोध कराया।
शशिकला व्यास शिल्पी✍️