विजयादशमी
विजयादशमी का महत्व
मौलिक ,स्वप्रेरित
“विजयादशमी पर्व हुआ महान ,
हुआ वध रावण का ,कहते श्रीमान्
अन्याय पर ,न्याय की जीत की रीत
असुरों पर देवी की शक्ति की थी जीत
होती आयुध पूजा औ’दुर्गा माँ पूजा
वास्तव में यह होती शक्ति की ही पूजा।
सभी मंगल कार्यों का अबूझ मुहुर्त यह
इस जैसे मुहुर्त नहीं अनेक ,न ऐसा दूजा।
अश्विन शुक्ल दशमी को मनाया जाने वाला पर्व जिसे हम दशहरा भी कहते हैं ,वस्तुतः ऋतुपरिवर्तन का सूचक है। वर्षा ऋतु की समाप्ति की अलिखित घोषणा है।
ज्यादा वेद पुराण नहीं पढ़े। 【जो भी पढ़े हैं उनके अनुसार यहाँ सृजन मान्य नहीं होगा】अतः लोक प्रचलित आस्था जो कहती,मानती है उसे ही मानना समीचीन होगा।
कहते हैं जब लंका पर चढ़ाई करने के लिये राम की वानर वंशी सेना व आदिवासी व अन्य सामान्य लोग.( जो सेना में शामिल थे) राम की पीड़ा देख साथ हो गये थे। सभी अस्त्र शस्त्र संचालन में कुशल थे जिनका नेतृत्व अंगद,नील आदि कर रहे थे। सभी लोग जब समुद्र किनारे पहुँचे तब पितर पक्ष के दिन समाप्ति की ओर थे। पितर पक्ष में शुभ कार्य नहीं हो सकता था अतः राम ने बाकी बचे दिन वहीं रुकने का निश्चय किया। सीता ने वहाँ पितरों का श्राद्घ किया था और जलांजलि दी थी।
अमावस्या के बाद नवरात्रि का पर्व शुरु हुआ।(शास्त्रों में उल्लेख है तब नवरात्रि नहीं अपितु शक्ति आराधना की जाती थी।गरबा या डंडिया फिल्मों की देन है ) तब राम ने नौ दिन का प्रण लेकर महाराष्ट्र के समुद्र तट के किनारे बसे पैठण नामक शहर में पूर्ण समर्पण,भक्ति के साथ शक्ति पूजा की थी।उसके पश्चात् दैवीय प्रेरणा से सफलता संबंधी संकेत ग्रहण कर उन्होंने लंका पर चढ़ाई शुरु की।
यहाँ ध्यातव्य है कि जब नौ दिन तो शक्ति आराधना में निकाल दिये तो मात्र एक रात्रि में लंका पर चढ़ाई करना व अन्य सभी घटना ..युद्ध आदि कर राम ने.रावण वध भी कर दिया?जो कि वस्तुतः राम ने नहीं लक्ष्मण ने किया था ..।
भारतीय संस्कृति में वीरता ,न्याय का अनन्य महत्व है।
विजयादशमी या दशहरा वस्तुतः दस प्रकार के पाप कर्मों से बचने की प्रेरणा देता है ।जो हैं–काम,क्रोध,मोह,मद,मत्सर ,अहम्,आलस्य हिंसा और चोरी।
कमोवेश जैन संस्कारों में भी भादों में यह दशलक्षण पर्व मनाया जाता है जो ऐसे ही दस कर्मों से बचने की प्रेरणा देता है। क्षमा,मार्दव आर्जव शौच संयम तप त्याग आकिंचन्य और ब्रह्मचर्य ।ये लक्षण आत्मा के हैं जो पावन बनाते हैं जीवन को।
विजयादशमी भी अवगुणों को त्याग कर आत्मा को पवित्र करने का पर्व है।
विजयादशमी का संबंध राम रावण युद्ध के परिणाम से जुड़ा है।
कहते हैं मराठा रत्न छत्रपति शिवाजी महाराज ने भी औरंगजेब के विरूद्ध इसी दिन प्रस्थान करके हिंदु धर्म की रक्षा की थी। इतिहास में इस बात के अनेकों साक्ष्य हैं जब हिन्दू राजा इस दिन को शुभ और अबूझ मुहुर्त मानते हुये युद्ध में विजय प्राप्त करने हेतु प्रस्थान करते थे।
गतांक से आगे
विजयादशमी को माँ विजया के नाम पर विजयादशमी कहते हैं। माना जाता है कि आश्विन शुक्ल दशमी को तारा उदय होने के समय #विजय नामक मुहुर्त होता है जो किसर्व कार्य सिद्दि के लिए जाना जाता है। इस कारण भी संभवतः विजयादशमी कहा जाता है।
जो भी हो,जनमानस में विजयादशमी को लेकर बहुत उत्साह रहता है। कहते हैं इस दिन दसों दिशायें भी खुली रहती हैं।इस दिन जो तांत्रिक विशेष सिद्धि करना चाहते हैं वह इस रात्रि को करते हैं।
कहा जा सकता है कि तंत्र मंत्र जंत्र के साथ अबूझ मुहुर्त होने से व सर्वकार्य सिद्धि हेतु विजयादशमी का महत्व सनातन परंपरा में बहुत हैं।
हाँ इस दिन अपने प्रिय, मित्रों को तांबुल खिलाने का भी रिवाज कुछ स्थानों पर है।
स्वरचित ,मौलिक ,अप्रकाशित
मनोरमा जैन पाखी
मेहगाँव जिला भिंड
मध्य प्रदेश