विजयादशमी तभी मनायेंं
विजयादशमी के उत्सव को,
धूमधाम से सभी मनाते
नगर नगर में रावण के,
ऊँचे पुतले फूंके जाते
त्रेतायुग की उस घटना का,
ढोल पीटते नहीं अघाते
कलियुग में कितने रूपों में
रावण रहता, देख न पाते
रावण ने तो केवल छल से,
सीता का अपहरण किया था
सीता के ऊपर उसने तब,
बल प्रयोग तो नहीं किया था
युग बदला तो साथ समय के,
रावण भी अब बदल गया है
त्रेता युग के रावण से वह,
कोसों आगे निकल गया है
अवसर पाकर घात लगाकर,
नारी का शिकार करता है
सोने की लंका के कारण,
पत्नी दाह किया करता है
ये सारी रावण लीला,
हम मूक खड़े देखा करते हैं
विजयादशमी पर नकली
रावण को फूंका करते हैं
आज समय की मांग यही है,
मिलजुलकर सब आगे आएं
पहले इस रावण से निपटें,
विजयादशमी तभी मनाएं.
श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद