विचित्र नगर
घर से निकल रहा था खुशी खुशी मां ने बिदा किया और बोली बेटा जल्दी आना घर कही वहां जाकर ही रमण जाओ दोस्त के यहां
मैने मुस्कुरा कर नहीं मां जल्दी आऊंगा।
घर से निकल गया और मेरे गांव से लगभग 40 किलोमीटर दूर वह गांव था जहां मेरा दोस्त रहता है अब मैं रास्ते में ही हूं लगभग 20 किलोमीटर मैंने पार कर लिया है दोस्तों साइकिल से नहीं मोटरसाइकिल से टाइम बहुत लगा मौज में पहुंचने ही वाला था गांव अब मेरे से 5 किलोमीटर दूरी पर था देखा तो एक विचित्र नगर रास्ते में पड़ा उस गांव का नाम खेमू नाम था।
लोगों से मैंने पूछा जो उसी गांव के आसपास बाहर खेतों में चारा काट रहे थे भाई यह कौन सा गांव है भाई साहब इस गांव का नामू खेमू है मैंने बोला यह कैसा नाम है वह बोले अरे भाई यहां गांव का नाम नहीं या इंसान भी ऐसे ही है
उन्हीं में से ग्रामीण बोला देखो पीछे अपने मैंने पीछे मुड़ कर देखा तो पीछे कोई नहीं था और दोबारा सामने देखा तो जो वह सब ग्रामीण थे कोई बैल कोई गाय कोई कुत्ता कोई बिल्ली इत्यादि सब बन गय।
मैं हैरान था ये सब क्या हुआ और मेरे जमीन से पैर उखड़ने लगे मैं डर गया अंदर से दिल टूटने लगा घबराहट सी अंदर होने लगी मैं समझ नहीं पा रहा था कि यह क्या हो रहा है कि जो मेरे सामने इंसान थे ग्रामीण वह कुत्ता बिल्ली गाय बैल इत्यादि बन गए।
मैं फटाक से साइकिल पर सवार हो गया और तेजी से साइकिल चलाने लगा सामने देखा कुछ दूर चल के गांव के बाहर दो पेड़ खड़े थे रास्ता पर पेड़ सोने का था और उसकी पत्तियां चांदी की मैं हैरान था यह देख कर के कि आखिर यह सब हो क्या रहा मेरे साथ फिर मैंने
……शेष भाग २ में
✍️…..आलोक वैद “आजाद”