विचार..
अक़्सर…ऐसा होता है
कि कोई विचार बिन बुलाये
मेहमान की तरह चला आता है,
ठहरता है मान-मनुहार कराता है
सुरसा के मुँह सी बढ़ती महंगाई में
खरीददार की खस्ता हालत की तरह
अशुद्ध होती विचार श्रंखला
का भान कराके कुढ़ाता है
बिचलित कर जाता है,
अपनी खुद्दारी से किये
समझौते याद दिलाता है
जिन्दगी की जरूरतों ने
आत्मसम्मान को कितने बार रौंदा है
एहसास कराता है, फिर बहुत चिढ़ाता है।।