विचार
एक दिन फेसबुक पर एक चुटकुला किसी ने डाल रखा था कि शर्मा जी लाकडाउन से बोर हो गए तो फेसबुक पर fake I’d बनाकर अपनी पत्नी से ही बात करना शुरू किए और अपनी पत्नी से ये सुनकर वो सदमे में चले गए कि उनके पति को गुजरे तीन साल हो गए।जब मैंने ये अपनी मम्मी को सुनाया तो वो बोलीं ये चुटकुला है?उनके इस प्रश्न को सुनकर मैं भी इस बात पर सोचने पर मजबूर हो गई कि क्या वाकई ये मात्र एक चुटकुला है या हमारे आज का यथार्थ? हम सभी फेसबुक, इंस्टाग्राम और व्हाट्सएप इत्यादि जैसे सोशल साइट्स के माध्यम से बहुत सारे लोगों से जुड़े हैं ,लगभग रोज उनसे बात भी हो ही जाती है लेकिन जो हमारे आसपास ,हमारे सामने मौजूद हैं ,हम उनसे कितना जुड़े हैं?उनके सुख दुःख से हमे कितना फर्क पड़ता है?जिन्हें शायद हम जानते भी नहीं और जो हमसे बहुत दूर हैं उनका हालचाल हम पूछ लेते हैं लेकिन जो हमारे साथ हैं , हम उनके सुख दुख के बारे में कभी जानने की कोशिश भी नहीं करते।
एक जमाना था जब 10 रुपये के रिचार्ज में 7 रुपये मिलते थे लेकिन तब हम सब लोगों के पास अपने रिश्तों को देने के लिए समय था। आज अनलिमिटेड पैक तो सबके फोन में है लेकिन रिश्तों को देने के लिए समय नहीं है। किसी के जन्मदिन पर भी हम उस व्यक्ति से बात करने की जगह उसकी चार फोटो डाल के स्टेटस लगाना ज्यादा उचित समझते हैं। हम और आप जब अपने काम से फुरसत पाते हैं तो हमें अपनों से बात करने की बजाय इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर रील्स देखना ज्यादा रूचिकर प्रतीत होता है। हमारे फेसबुक और इंस्टाग्राम पर तो अनगिनत दोस्त मित्र हैं लेकिन जरा समय निकाल कर इस बात पर विचार करिएगा कि वास्तव में आपकी जिंदगी में कितने दोस्त हैं और आप कितनों के दोस्त हैं?