विचार मौन थे!
विचार मौन थे!
आकृतियां आकर्षित थीं
आतुरताएं भेज रहीं थीं
एक अनुबंध-पत्र
उभरने लगे थे शब्द
प्रतीक्षाएं परिचित थीं
प्रेम उपज रहा था..
लालायित थीं..
व्यक्त होने को..नव-कथाएं!
इंन्द्रियां चकित थीं.. परिवर्तित भावों पर..
ध्वनियाॅं प्रमुदित थीं..
विचार ..अब भी मौन थे..
प्रकाशित हो पड़ा व्यक्तित्व!
प्रिय! तुम कौन थे?
स्वरचित
रश्मि लहर
लखनऊ