विचार-मंथन
आदमी हमेशा कुछ समझाने की कोशिश करता है,
यद्यपि वह समझने की कोशिश करता है..
लेकिन आफत पड़ने पर,
और उसे कामयाबी मिलती है,
लोकतंत्र वा निष्पक्षता में जरूरी है,
सुनने वा बोलने वाला
ये न सोचे कि सुनने वा बोलने वाले से
मेरा कोई संबंध है.
गर ऐसा हुआ तो
दोहरा चरित्र प्रकट होगा,
और झूठ ही सुना और बोला जायेगा.
मन ही धर्म वा अधर्म
मूढ़ता वा बुद्धिमता का
वाहक हैं,
प्रेम वा समर्पण में मन विदा हो जाता है,
इसलिये प्रेम में फूल खिलते वा बरसते है,
ज्ञान हमेशा अधूरा रहता है,
और प्रेम पूर्ण एवं पूरक …
आदमी कुछ मांगने की कोशिश में,
जो उसके पास है उसे भी खो देता है,
भगवान की कल्पना भी इसी का आधार.
धर्म की खोज़ का आधार नास्तिक ही कर सकता है,
आस्थावान सिर्फ़ शब्दों एवं परम्परा का वाहक होता है
अतः कहा जाता है उपदेश से अच्छे उदाहरण बने !!
सुना है आदमी सिर्फ़ दुकानें बदलता है,
आदतें नहीं …
एक आदत के बदलाव के चक्कर में.
आदतों को बढ़ा लेता है.
बुरी आदतें ही सच में महादुख है.
मंथन.. मनन फिर भी नहीं करता.
डॉ_महेन्द्र