विचार प्रवाह
प्रेरित होकर जो बढ़े, नहीं रहता मोहताज़,
सफलता वा की दासी,सदा सजे सिरताज़
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वार त्यौहार इतवार, कैसे मनोरोग उपचार,
एक दिन की व्यवस्था, किस विध तारे पार,
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न ही ईंधन ना ही जल की कोई कमी
खूब सारी खुशियां मने गीली है जमी
होली भी जिंदा है उत्पाती आज भी प्रह्लाद,
जली नहीं बस कुप्रथा, ये कैसा हर्ष उन्माद,
छ: कन्या मार कर, सातवीं पुत्र संतान,
उसके इर्दगिर्द घूमे सामाजिक अभियान,