विचार और विचारधारा
विचार वस्तुतः एक तरह की ऐसी मन:स्फूर्त क्रिया है जो शब्दों , संवेदनाओं और मूर्त आकारों को व्यक्त करने में सहायक होती है । किसी विषय वस्तु पर चिंतन , मंथन और निर्णय की प्रक्रिया में विचार आधारभूत भूमिका निभाते हैं । लगभग सभी प्राणी अपने मन की सचेतन और जागृत अवस्था में विचार करते हैं । विचार निरंतर प्रवहमान और परिवर्तनशील होते हैं । एक ही विषय वस्तु पर एक ही व्यक्ति के विचार समय , स्थिति और स्थान के अनुरूप अलग-अलग हो सकते हैं । इतना ही नहीं मन की पंचदशाओं के अनुरूप एक ही व्यक्ति के विचार एक ही कालखंड में एक ही स्थान पर एक जैसी स्थिति में अलग-अलग हो सकते हैं । मन की उच्च और निम्न अवस्थाएं विचारों को प्रभावित करती हैं । मन में उठने वाली प्रत्येक बात अथवा क्रिया विचार नहीं है । मन की उन्हीं क्रियायों को विचार कहा जा सकता है जिनके मूल में चिंतन की प्रौढ़ता और परिपक्वता हो ।
एक उदाहरण के माध्यम से इसे हम इस तरह समझ सकते हैं कि बहुत अधिक धन रखने वाले व्यक्ति को धनवान कहा जा सकता है लेकिन बहुत अधिक विचार रखने वाले व्यक्ति को विचारवान नहीं कहा जा सकता। विचारवान से तात्पर्य है ऐसे व्यक्ति से है जिसके चिंतन में सुसंगतता, स्वतंत्रता , सामंजस्य और आत्मकल्याण का भाव निहित हो । विचारों की त्वरा हमारे अंदर आवेग पैदा करती है जबकि विचारों का शमन हमें प्रशांति की ओर ले जाता है । विचार से सद्विचार और सद्विचार से निर्विचार तक की एक पूरी यात्रा है । विचार एक तरह की खोज है । आत्म कल्याण की खोज । विचार आत्म कल्याण की धुरी है । विचारों की दृढ़ता , स्वतंत्रता , गुणवत्ता और ऋजुता , मन की उन्नत अवस्था की सूचक हैं। जबकि विचारों में क्षिप्रता, चंचलता , बहुलता और जटिलता अपरिपक्व मन की निशानी हैं । शास्त्रीय ग्रंथों में अक्सर इस बात पर बल दिया जाता है कि कैसे हम अपने मन में निरंतर सद्विचार उत्सर्जित करें और उनमें स्थायित्व बनाये रखें । विचार नितांत व्यक्तिगत पूंजी होते हैं और यह आत्म कल्याण का सर्वाधिक महत्वपूर्ण साधन हैं ।
विचार और विचारधारा में वही अंतर है जो जल और जलधारा में है । यदि कोई व्यक्ति प्यासा है तो वह कहीं से भी जल लेकर अपनी प्यास बुझा सकता है । यह एक व्यक्तिगत मामला है । जलधारा व्यक्तिगत मामला न होकर सामूहिक मामला है । इसमें आत्म कल्याण नहीं लोक कल्याण की भावना अंतर्निहित है । जलधारा का तात्पर्य है नहर बनवाकर खेतों की सिंचाई की व्यवस्था करना या फिर पानी की पाइपलाइन बिछवाकर किसी नगर या गांव में पानी पहुंचाना । लेकिन कभी-कभी देखने में आता है कि नहर बनाने वाला व्यक्ति संसाधनों का दुरुपयोग कर भ्रष्ट तरीके से अपने लिए धन संग्रह कर लेता है। नहर के निर्माण से उसका उद्देश्य न तो अपनी प्यास बुझाना है न लोगों की । उसका उद्देश्य धन संचयन और आत्म उन्नयन होता है । ठीक इसी तरह विचारधाराओं के प्रणेता भी अक्सर लोक कल्याण की आड़ में विचारधाराओं का दुरुपयोग कर आत्म उन्नयन में लग जाते हैं । वह किसी जाति , उपजाति , धर्म अथवा संप्रदाय के उत्थान और उन्नयन का सब्जबाग दिखाकर एक विचारधारा प्रतिपादित करते हैं और संस्थाएं स्थापित करते हैं । फिर विचारधारा के समर्थकों का एक जनसमूह तैयार करते हैं और फिर इस जन्म समूह का उपयोग आत्म उन्नयन और धन संचयन के लिए करते हैं। ऐसी स्थिति में विचारधाराओं के समर्थक दास मात्र बनकर रह जाते हैं ।
इसीलिए आत्म कल्याण के पिपासु साधक विचार चुनते हैं , विचारधाराएं नहीं ।
— शिवकुमार बिलगरामी —