विचारों को मैं रोक नहीं पाया __ कविता
मन को मैंने लाख समझाया।
विचारों को मैं रोक नहीं पाया।
कभी यह तो कभी वह,
अंदर चला ही आया।।
इससे मन की गति कहूं,
या ईश्वर की कृति।
मैं समझ नहीं पाया।।
जिसके पास बैठा,
दूसरे के पास जाकर।
उसी का उपहास उड़ाया।।
सोचता हूं विचारों को आने ना दूं,
मन से अपने कह दूं ।
पर मन को वश में कहां कर पाया।।
लगता है जब तक धड़कन धड़केगी,
विचारों की गति निरंतर सरकेगी।
जन्मदाता ईश्वर ने आखिर ,
यह मन कैसा बनाया।।
राजेश व्यास अनुनय