विचारिए क्या चाहते है आप?
संसार की दयनीय स्थिति हो चुकी है।आज अधिकांश लोग परमात्मा से प्रेम करते ही नही है।हम जैसे लोग परमात्मा से सिर्फ अपनी चाह पूरी करवाना चाहते है।हमने परमात्मा को माना भी इसलिए है की वो हमारी इच्छापूर्ति करेंगे।उन्हें सिर्फ अपना काम करवाने वाला माध्यम बना रखा है।
हे परमात्मा हमे धन -धान्य ,स्वास्थ्य ,नाम ,पद -प्रतिष्ठा, भोग के सारे सामान दे दीजिए।परमात्मा भी अपना पल्ला झाड़ लेते है।जब तुझे मेरी आवश्यकता ही नहीं तो मैं क्यों मिलूं?
अपने भीतर हम सूक्ष्म निरीक्षण करेंगे तो हमारी एक मात्र मांग परमात्मा नही है।संसार की अनगिनत वासनाएं हमारे मन में दबी हुई है।
फिर जब इन बातों का पता कुछ चतुर लोगो को लग जाता है तो वो परमात्मा को अपनी कमाई का माध्यम बना लेते है।मेरे पास आओ में सुख- शांति, धन -दौलत दूंगा।आपकी सारी समस्याओं का समाधान करूंगा।अमुक- अमुक सरकार ,अमुक बाबा ,अमुक दरबार।किसी को इसकी सवारी किसी को उसकी सवारी।और जनता भी चमत्कार को नमस्कार करती है तो बड़े मजे से जाती है ऐसे स्थानों पर।
जिसको वाकई में परमात्मा से प्रेम होता है वो स्वयं को परमात्मा की शरण में मानकर निर्भय हो जाता है।क्योंकि उसकी एकमात्र इच्छा परमात्मा प्राप्ति हो जाती है।उसे ऐसे चमत्कारों, की धन- दौलत की नाम, पद- प्रतिष्ठा ,नश्वर पदार्थों में कोई मोह नहीं रहता। वह अपने मन को परमात्मा को समर्पित कर देता है।जैसा प्रभु कर दे, वह उसमे राजी होता है।
ऐसे प्रेमी भक्त आजकल कम हो गए है और पैसा के भक्त ज्यादा ।क्योंकि पैसा को रुपया को ज्यादा महत्व दे दिया है।तो भगवान भी इनको जड़ रुपया के रूप में ही मिलता है।क्योंकि ये यथा माम प्रपद्यंते तास्तथैव भजाम्यहम गीताजी में भगवान ने कहा है।जो जैसा मुझे भजता है मैं भी उसे उसी प्रकार भजता हूं।
जों सच्चे मन से चाहोगे वही मिलेगा संसार चाहोगे संसार मिलेगा।
अगर तुम्हारी सच्ची लगन परमात्मा है तो परमात्मा मिलेंगे।
ये भी मिल जाए और वो भी कभी न हुआ था,कभी ना हुआ और कभी ना हो सकेगा।
या तो संसार या परमात्मा
विचारिये क्या चाहते है आप?
©ठाकुर प्रतापसिंह राणा
सनावद(मध्यप्रदेश)