विचारमंच भाग -3
इंकार और इज्जत की जतन हम कर न सके|
बेशक सोने का हो पिंजडा, पर परिन्दा उसे पसन्द नहीं करता!(16)
कुछ ख्वाहिश और चलती सांसो का नाम है जिन्दगी|
वर्ना मुर्दाघाट में और मयखाने में भीड क्या कम होती है?(17)
जब ख्वाहिशमंद होने लगी दिल की गलियाँ, कसम से अनछुआ कोई न रहा ||(18)
शोहरत की कमी तो है मुझे, कल तेरी गली से निकला और किसी ने कुछ भी कहा नहीं ||(19)
इंसान होने का शौक ले आया मुझे दुनियाँ में, बर्ना खुदा बनने में हर्ज ही क्या है?(20)
क्रमश: