विचारधारा
समाज और सरकारें जिन्हें सम्मान देती हैं, उन्हें आजीवन यह समझ में नहीं आता कि उन्हें सिवाय गुलामी के और कुछ नहीं देतीं। और जो कुछ भी दिया हुआ जैसे दिखता है, मरने के बाद वह सब छोडकर ही जाना पड़ता है।
कभी पिंजरे में कैद पंछी को देखा है ? कितना लाढ़-दुलार मिलता है ना उसे
जो जागृत हो जाएगा, वह मान-सम्मान से प्रभावित नहीं होगा। कोई उसे मान-सम्मान देकर अपना गुलाम नहीं बना पाएगा। जागृत व्यक्ति से जुड़ना है, तो उसे उसकी अपनी मौलिकता में ही स्वीकारना होगा। अन्यथा उससे दूर ही रहें।
~ विशुद्ध चैतन्य
नोट: सांप्रदायिकता, पार्टीवाद, जातिवाद, वामपंथ, दक्षिणपंथ और गुलाम मानसिकता से मुक्त लोगों को ही यह लेख समझ में आएगा। बाकी लोग अपने दिमाग का दही न करें।