विचारणीय
यहाँ साहित्य गौण है,
कविता पीछे छूट गयी,
निर्झर लेखिनी रूठ गयी,
कवि भिक्षुक बन आगे बढ़ गया,
साहित्य के नाम पर देदो बाबा !
साहित्य पीडिआ तेरा भला करेगा !
तेरी हर मनोकामना पूरी करेगा !
तिरस्कार भी गटक गया,
वोट की चाहत में कवि दर-दर भटक गया |
हर दिशा में पुरजोर वोट की खोज चल रही है |
कुछ देकर ले रहें हैं और कुछ लेकर दे रहें हैं |
लेन-देन हो जाने पर,
एक दूजे को धन्यवाद दे रहे हैं |
सारा लेन-देन ईमानदारी के साथ हो रहा है | गुणवत्ता को लेकर –
किसी को कोई शिकायत नहीं,
अच्छे साहित्य की किसी को चाहत नहीं |
सारा माल वोट-बाजार में खप रहा है,
पर सच्चा पाठक विलख रहा है |
उच्चकोटि की है समझ और साझेदारी,
साहित्य पीडिया का साहित्य है आभारी |
प्राप्त वोटों की संख्या से –
माँ की महिमा को मापा जायेगा,
रचनाओं की गहराई को जाना जायेगा |
साहित्य पीडिया को विश्वास है –
इस प्रतियोगिता से –
पंत, प्रसाद, निराला,
महादेवी जी का आगमन होगा,
छायावादी पुष्प उद्यान फिर से चमन होगा |
इसीलिए साक्षी भाव से लगी हुई है,
इस पुण्य कार्य में अविराम,
साहित्य पीडिया के इस भागीरथी प्रयास को –
मेरा सत-सत प्रणाम |
कुछ कवि, महाराज त्रिशंकु की तरह –
सदेह स्वर्ग जाना चाहते हैं |
उनको मेरी शुभ-कामनाएँ |
वोट की बैसाखी पर –
वो वहाँ आराम से जाएँ |
इंद्र देव से पुरस्कार पाएँ,
लौटते वक्त अपने साथ –
कामधेनु, ऐरावत, पारिजात पुष्प जरूर लाएँ |
आइए,
इस महत कार्य में सहयोग करें,
तर्क-कुतर्क से ऊपर उठकर,
वोट की परिधि में सिमटकर,
अपने विवेक के नेत्र बंदकर,
मन को निर्द्वन्द्व कर,
पर इससे किसका भला होगा –
साहित्य का, साहित्य पीडिया का ?
जरूर विचार करें |
मैं हृदय से आपका आभारी रहूँगा |
– हरिकिशन मूंधड़ा
कूचबिहार