विचरते भावों को फिर पंख देते हैं
विचरते भावों को चलो आज फिर पंख देते हैं,
गगन में उड़ते पंछी को चलो फिर संग देते हैं|
चुरा लें लो गगन सारे, चाँदनी चाँद और तारे,
बिखरते चाँद-तारों को चलो फिर रंग देते हैं|
बामुश्किल मिले जीवन, समझ ना जंग लड़ाओ जी
कोमल धागा हैं रिश्ते, प्यार संग-संग निभाओ जी|
चटक तोड़ो ना प्यार सच्चा, हृदय झट टूट जाएगा,
‘मयंक’ टूटा फिर ये दिल, कभी ना जोड़ पाओ जी|
✍के.आर.परमाल “मयंक”