विक्रम* *संवत* (*गीत*)
विक्रम संवत (*गीत*)
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सुनो- सुनो विक्रम संवत की गरिमामयी कहानी
अनपढ़ या विद्वान सभी को यह था याद जुबानी
( 1 )
चैत्र शुक्ल से विक्रम संवत नया वर्ष है आता
गर्मी का बैसाख जेठ आषाढ़ मास कहलाता
सावन भादो वर्षा अपने सँग में लेकर आती
क्वार और कार्तिक में गाना धूप गुनगुनी गाती
अगहन पूस माघ में लगता हिम के जैसा पानी
फागुन की मस्ती की महिमा सारे जग ने मानी
( 2 )
पूरनमासी एक माह का दिवस आखिरी माना
एक-एक दिन करके उसके बाद चाँद घट जाना
फिर आती है घोर अमावस कहीं चाँद छिप जाता
पुनः दूज का चाँद एक पतली रेखा- सा आता
खेल देखते चंदा का तिथियों में सारे ज्ञानी
उत्सव मनता रोज चाँद की कला देख मस्तानी
( 3 )
नहीं ईसवी सन् चलता था जब आजादी आई
आजादी के बाद सुनो संवत की हुई विदाई
दो हजार वर्षों तक भवनों पर संवत की गाथा
इस संवत से किया हिंद ने अपना ऊँचा माथा
पता नहीं कैसे संवत के हुई साथ नादानी
पता नहीं क्यों भूले संवत निज पहचान बनानी
अनपढ़ या विद्वान सभी को यह था याद जुबानी
सुनो- सुनो विक्रम संवत की गरिमामयी कहानी
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लेखक : रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा,रामपुर( उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99 97 61 5451