#विक्रम चुप क्यों है ?
~ अनसुनी कथा ~
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★ #विक्रम चुप क्यों है ? ★
“बाबा ! यह कैसा यंत्र है? मुझे भय की प्रतीति हो रही है।”
“विधर्मी ने जब तुझे जीवित ही पेड़ से बांधकर जला दिया, तब केवल तेरह वर्ष की आयु थी तेरी, तब तुझे भय नहीं हुआ। और आज, इस खिलौने से भय की प्रतीति हो रही है तुझे?”
“वो देश की बात थी बाबा। आपने देखा न उस देशहितार्थयज्ञ में मेरी प्राणाहुति पड़ते ही कैसे भागना पड़ा उन नरपिशाचों को।”
“यह भी देश की बात है पुत्री।”
“मुझे पूरा वृत्तांत बताइये बाबा। इस यंत्र का नाम क्या है? यह कहाँ से आया है अथवा इसे किसने भेजा है। और इसके चंद्रलोक में आने का उद्देश्य क्या है?”
“सुनो, अपने सभी प्रश्नों का उत्तर सुनो। इसका उद्देश्य चंद्रलोक की संपूर्ण व्यवस्था को जानना है। ऋषि सोमनाथ ने इसे भेजा है और यह हमारी प्राणप्रियधरती पृथुसुता पृथ्वी से आया है। और इसके स्वामी ऋषि सोमनाथ ने इसे विक्रम नाम दिया है।”
“तब आपने इसका स्तंभन क्यों किया बाबा?”
“जितनी जानकारी वांछित थी उतनी यह अपने स्वामी को प्रेषित कर चुका।”
“तब भी, यदि यह सक्रिय रहता तो मैं इसे अपने खिलौनों में जोड़ लेती।”
“निष्क्रिय तो यह अब भी नहीं है पुत्री, केवल अपने स्वामी को नवीनतम सूचनाएं भेजने में समर्थ नहीं रहा।”
“बाबा, इसका उद्देश्य निर्मल था, इसके स्वामी ऋषि सोमनाथ ईश्वर के प्रिय पुत्रों में से हैं तब भी आपने इसे गंगुपंगु क्यों कर दिया?”
“मैना पुत्री, किसी भी व्यक्ति को सामर्थ्य से अधिक बल अथवा ज्ञान पथभ्रष्ट कर सकता है।”
“चंद्रलोक की व्यवस्था को जानना ही तो इसका उद्देश्य बताया न आपने, तो यह ज्ञान किसीके लिए भी हानिकारक किस प्रकार हो सकता है?”
“किसी मनुष्य के शरीर में जो अगणित रोमकूप हुआ करते हैं चंद्रलोक की स्थिति ब्रह्मांड में मात्र उतनी ही है। लेकिन, इस विशाल यंत्रालय का स्वाभाविक अंग होने के कारण इसे जानने का अर्थ है संपूर्ण ब्रह्मांड को जानना।”
“और यह ज्ञान किसके हित में नहीं है?”
“परमपिता परमात्मा का ही विधान है कि समयसमय पर मानवद्रोही ईश्वरीय विधान के शत्रु भी यहाँ उपजा करते हैं। वे उपजें, प्रभु उनका नाश करें लेकिन, उस विकटता में हम सहयोगी क्यों बनें?”
“तब पृथ्वीवासियों के लिए ब्रह्मांड को निषिद्ध क्षेत्र घोषित क्यों नहीं कर देते प्रभु?”
“प्रभु ने कुछ भी गोपनीय नहीं रखा पुत्री। मनुष्यशरीर ब्रह्मांड का ही सूक्ष्म रूप है, उसे जान लेने से ही ब्रह्मांड को जाना जा सकता है। और फिर ईश्वर द्वारा जगतसृष्टि से पूर्व वेदों की रचना की गई, उन्हें जान लेने पर भी ब्रह्मांड को जाना जा सकता है।”
“बाबा, विक्रम ने अपने स्वामी को जो जानकारी भेजी है उसमें मेरे अथवा आपके संबंध में भी कुछ कहा है क्या?”
“ईश्वर ने जिन चौरासी लाख योनियों का सर्जन किया उनमें अति विशाल और अति सूक्ष्म योनियां भी हैं। भूतप्रेत अथवा देवत्व को प्राप्त योनियों को उनकी इच्छा अथवा सहमति के बिना मनुष्य अथवा उनके यंत्र नहीं देख पाते। मैं और तुम अथवा चंद्रलोक के अन्य निवासी वे हैं जिनके सत्कर्मों के फलस्वरूप उन्हें चंद्रलोक में स्थान मिला है। सत्कर्मों के क्षीण होने पर हमें पुनः पृथ्वी पर लौटना होगा।”
“लो बाबा, मनु दीदी आ गईं। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई! यह राणा जी के चेतक पर बैठकर इधरउधर विचरा करती हैं और राणा जी पद्मासन लगाए चिंतनमनन किया करते हैं।
“बाबा, इनको यहाँ चंद्रलोक में आए तो बहुत दिन हुए इनका वापस लौटना अब तक क्यों नहीं हुआ?”
“तुमने ठीक कहा पुत्री, बहुत दिन हुए, चंद्रलोक के केवल तेरह दिनों में ही पृथ्वी पर एक वर्ष का समय बीत जाता है। इस विधि से इन्हें अभी और भी बहुत दिनों तक यहाँ सुख भोगना होगा। इनके सत्कर्म अति विशाल हैं। ऐसी पुण्यात्माओं को यहाँ से स्वर्गलोक भेजने की व्यवस्था है।”
“यह समस्त व्यवस्था जो आप जानते हैं और मुझे बता रहे हैं पृथ्वी पर इसकी जानकारी सहजसुलभ नहीं है क्या?”
“ऋषि पिप्पलाद से छह ऋषियों सुकेशा, सत्यकाम, सौर्यायणी, आश्वलायन, भार्गव और कबन्धी ने जो प्रश्न पूछे थे और उन्होंने जिनका विस्तृत उत्तर दिया था वो सब वृत्तांत ‘प्रश्नोपनिषद’ में अंकित है। वो मनुष्यों के लिए सहजसुलभ हैं। उस प्रश्नोत्तरी में चंद्रलोक की भी चर्चा है, पुत्री!” नाना साहेब के नाम से विख्यात माँ भारती के वीर सपूत धोंडूपंत अपनी दत्तक पुत्री मैनाकुमारी को पूर्णतया संतुष्ट करने में मग्न थे।
“क्यों रे विक्रम, सुन रहा है तू!”
“यह सब सुन रहा है। इसकी स्मृतिमंजूषा में हमारा संपूर्ण वार्तालाप अंकित हो चुका। यदि कभी ईशकृपा हुई तो यह अपने स्वामी को सब कथा कह सुनाएगा।”
“जय माँ भारती ! ! !”
#वेदप्रकाश लाम्बा
यमुनानगर (हरियाणा)
९४६६०१७३१२