विक्रमादित्य के बत्तीस गुण
सिंहासन बत्तीसी प्राप्ति की कथा
भाग 1
इस ब्रह्मांड में भारत भूमि ही एक ऐसी पवित्र और पावन भूमि है जिसमें जन्म लेने के लिए देवता तक लालाहित रहते है इसी भारत भूमि में अनेकों ऐसे पवित्र नगर है जिसमें धर्म और न्याय की हमेशा जीत होती है इन्हीं में से एक है महत्वपूर्ण नगरी है उज्जैनी जहाँ 2100 बरस पहले एक न्यायप्रिय चक्रवर्ती राजा विक्रमादित्य का शासन काल था और जिनकी न्यायप्रियता के कारण ही उज्जैनी न्याय की नगरी के नाम से प्रसिद्ध हुई किंतु विक्रमादित्य के बाद सदियों तक उज्जैनी को उनके बराबर का राजा नहीं मिला और देखते ही देखते 1100 वर्ष बीत गये और तब आया राजा भोज का शासन काल राजा भोज जो महज एक शासक ही नहीं थे विद्वता, विनम्रता और बलशाली भी थे। माँ सरस्वती की विशेष कृपा थी राजा भोज पर। उन्होंने महज एक रात में रामायण को काव्य और कथा दोनों ही रूपों में लिख दिया था जहाँ राजा भोज नीति विवेक ज्ञान के उदाहरण थे वहीं धर्म अनुष्ठान में भी राजा भोज की गहरी आस्था थी। महाकाल के परम भक्त थे राजा भोज ।
राजा भोज महाकाल मंदिर से महल आते हैं वही पुरी उज्जैनी उनकी जय जय कार करती है महाराजा भोज की जय हो.. महाराजा भोज की जय हो.. तभी राजा भोज कहते हैं “शांत प्रजा जनों! राजा तो केवल एक है वो महाकाल.. मैं तो आपका और आपकी इस उज्जैनी का सेवक हूँ मेरे जीवन का एक मात्र उद्देश्य है आप सब का सुख अगर आप सब को सुख दे पाया तो अपने आपको अत्यंत सोभाग्यशाली समझूंगा। ”
राजा भोज की इसी उदारता और महानता का परिणाम था कि राजा भोज का नाम भी सिंहासन बत्तीसी के पन्नों पर अमर हो गया ।
जय महाकाल.. 🙏🏻