विकृती
समाज मे स्थित विकृती का करना चाहिये दहन.
लेकिन समाज ही करता है उसका जानबूज कर जतन.
जतन करणे से बढता है विकृति का बल.
और उससे निर्माण होता है घातक हलाहल.
फिर समाज करता है अपनी मूल संस्कृती का दहन.
और करवा लेता है अपना पूर्ण नैतिक पतन.
कालबाह्य ठहराकर हम अपनी जलाते है संस्कृती .
उसी से होती है अपनी अपरिमीत अधोगती.
ग्रंथो को जलाने से जलती नही विकृती.
विकृती को ही जलाने के लिए जतन करणे होती है संस्कृती.