विकास
कैसी रही विकास गति , चित्र खोलता पोल ।
कितना ही करो सुधार , तो भी रहती झोल ।।
तो भी रहती झोल , सरकार लगे बिचारी ।
शौच बाहर जाए , कोई न सुने हमारी ।।
जनता की हो रही है , आज ऐसी तैसी ।
कोई भी न अब सुनता , रही विकास कैसी ।।
डॉ मधु त्रिवेदी